For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़े बेटे ने माँ के फटे पुराने कपड़े इकट्ठे किए । दूसरा बेटा चश्मा और छड़ी ढूँढकर लाया । तीसरे ने दवाई की शीशी और पुड़ियाँ अलमारी से निकाली । छोटी बहू कड़वा ताना देती हुई बोली-" जाने कब मरेगी । लगता है कोई अमर बूटी खाकर आई है ।" चारों मिलकर माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आए । अब चारों ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला -चिल्लाकर सभी को बता रहे हैं कि माँ अपनी राजी-मर्जी से हमेशा के लिए अपनी बेटी के घर चली गईं ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Views: 802

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 10:35am

आदरणीय आरिफ जी नमस्कार,

बहुत ही कटूसत्य है ये आज के समाज में बुजुर्ग माँ-बाप की जो हालत है ...

झकझोर के रख दिया ....बहुत ही बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Mohammed Arif on March 8, 2018 at 5:06pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी । लेखन सार्थ क हो गया ।

Comment by Mohammed Arif on March 8, 2018 at 5:04pm

रचना पर अपनी प्रतिक्रिया से मान बढ़ाने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय सोमेश जी ।

Comment by नाथ सोनांचली on March 8, 2018 at 2:06pm

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन।बढिया लघुकथा, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Mohammed Arif on March 7, 2018 at 2:40pm

लघुकथा पर अपनी निरपेक्ष टिप्पणी से सफल बनाने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2018 at 1:42pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब ,आपकी जादुई क़लम से बहुत ही सुन्दर लघुकथा निकल कर आई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Mohammed Arif on March 7, 2018 at 8:43am

अद्भुत और बड़ी विस्मकारी टिप्पणी । ऐसा टिप्पणी पाना मेरा लिए बहुत बड़ी खुशक़िस्मती है । लेखन सार्थक हो गया । किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूँ समझ में नहीं आ रहा । दिली शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

Comment by Mohammed Arif on March 7, 2018 at 8:39am

रचना पर टिप्पणी देकर उसका मान बढ़ाने का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सलीम रज़ा साहब ।

Comment by Samar kabeer on March 6, 2018 at 10:03pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,कम शब्दों में जादू जगाना कोई आपसे सीखे,बहुत उम्दा लघुकथा,सच्चाई से क़रीब, वाह बहुत ख़ूब, इस बहतरीन प्रस्तुति पर ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 6, 2018 at 9:11pm
जनाब आरिफ साहब,
ख़ूबसूरत लघुकथा के लिए मुबारक़बाद,
बांकी अपनी राय गुनीजन लोग देंगें..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service