For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

***माँ का वेलेंटाइन***(लघुकथा)राहिला


"हुआ क्या है ? पागल! कुछ तो बता।" सुमि की बार -बार भरती - पुछती आँखे देख कर तृषा ने जोर देकर पूछा।

"मुझे लगता है माँ का किसी के साथ...!" कह कर वह अपनी सबसे नजदीकी सखी के गले लगकर रो पड़ी।"
"क्याsss किसी के साथ....? तेरा दिमाग़ तो ठिकाने पर है ? ये शक़ कैसे पनपा तेरे मन में? उसने अविश्वास जताया।
आज वेलेंटाइन डे है ,जब तक पापा रहे , वह उनके लिए फूल खरीदतीं थीं । लेकिन आज जब वह नहीं हैं तो फिर किसके लिए खरीद रहीं थीं ?"
"मतलब तूने उन्हें फूल खरीदते देखा?"
"सिर्फ इतना ही नहीं आजकल काफी रात तक चैटिंग करती रहती हैं। आजकल बहुत खुश दिखाई पड़ती है। वरना पहले तो बस रोतीं रहती थीं।"
"यार! ये तो अच्छी बात है अगर वह उस दुख से उभर रहीं हैं तो ।"
"और उनका वेलेंटाइन...? मैं अपने पापा की जगह किसी और को एक पल के लिए बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
"तो तू सीधे-सीधे पूछ ले ना ।"
"लेकिन अगर ऐसा कुछ नहीं निकला तो ...,उन्हें मेरा शक़ करना कितना बुरा लगेगा।"
"हाँ यह तो है।
अच्छा ये बता, तूने कब देखा आँटी को फूल लेते हुए?"

"अभी रास्ते में जब मैं पार्क आ रही थी।"
"वह विशेष तैयार थीं क्या?"
"नहीं?"
"इसका मतलब वह जहाँ भी जाएंगी तैयार तो होंगीं ना! चल अभी देर नहीं हुई, घर चलते हैं । वहाँ से वह जहाँ जाएंगी, अपन उनके पीछे।" दोनों घर का रूख करती हैं।
" माँ का स्कूटर तो खड़ा है।मतलब वह अंदर ही हैं।"
वह दोनों अंदर जाकर देखती हैं, तो लाइब्रेरी से माँ की किसी से आहिस्ता-आहिस्ता बात करने की आवाज़ आ रही थी। वह तृषा को वहीं बैठा कर, उस ओर बढ़ गयी।
" बिल्कुल टूट गयी थी राकेश ? ,
लेकिन अब पहले से बेहतर हूँ।
आज अगर मैं दुनियाँ से लड़ने के लिए फिर से तैयार हूँ , तो इनकी वजह से । आपकी कमी हमेशा खलेगी । आज के दिन ये लाल गुलाब मैं आपको देती आयी , आज आपकी जगह इन को दे रहीं हूँ। इन्होंने एक सच्चे साथी की तरह मुझे नकारात्मक होने से बचा लिया। " इतने में सुमि ने लाइब्रेरी का दरवाजा खोल दिया।
लाल गुलाब के फूल पुस्तकों के बीच रखे थे।


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 589

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 16, 2018 at 12:00pm

बहुत -बहुत आभार आदरणीय तिवारी सरजी!

Comment by indravidyavachaspatitiwari on February 15, 2018 at 5:32pm

रोहिला जी की लघुकथा में जो रवानी है वह काबिले तारीफ है। मां का सस्पेंस अपने आप में एक उदाहरण रखता है। अंत भी एक पुस्तक तक जाकर सराहनीय स्थान बनाता है। संग्रहणीय रचना के लिए सादर धन्यवाद

Comment by Rahila on February 14, 2018 at 9:21pm

शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी! सलाह पर ध्यान दूँगी।सादर

Comment by Rahila on February 14, 2018 at 9:20pm
  • आदरणीया कल्पना दीदी ! जो किताबें व्यक्ति को सकारात्मक होने की सलाह देती हैं,या अवसाद से लड़ने में मदद  करती हैं। उनमें कई तरह के प्रयोग करने को कहे जाते है। जिनमें एक ये भी होता है आप लोगों से बातचीत करें । कुछ  मनपसंद कार्य करें। इसमें इसलिये मैनें वह पंक्तियां जोड़ी ।लोगों के संपर्क में रहना, अकेले रहने से बेहतर है।और आजकल मोबाइल इसका बेहतरीन विकल्प है। सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2018 at 9:11am

बहुत बढ़िया। राह दिखाती सकारात्मक संदेश वाहक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया राहिला जी। थोड़ी कसावट की जा सकती है।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 6:31pm

बढ़िया लघुकथा हुई है आ राहिला जी | एक प्रश्न उठ रहा है मन में अन्यथा न लें तो -"सिर्फ इतना ही नहीं आजकल काफी रात तक चैटिंग करती रहती हैं। आजकल बहुत खुश दिखाई पड़ती है। वरना पहले तो बस रोतीं रहती थीं।"

आगे आपने कहा है माँ किताबों से बातें करती थीं | फिर उपयुक्त पंक्तियों को न भी लिखें तो ? चैटिंग वाली बात तो क्लियर नहीं हो पायी है | सादर |

Comment by Rahila on February 13, 2018 at 6:12pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय मिश्रा सर जी!

Comment by Rahila on February 13, 2018 at 6:11pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सर जी!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2018 at 3:30pm

आदरणीया राहिला जी आपकी रचना में हमेश एक नयी सोच और ताजगी रहती है रचना का अंत सुखद लगा हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on February 13, 2018 at 3:09pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला आसिफ़ जी। बेहतरीन लघुकथा।एक यथार्थ को आपने लघुकथा में तब्दील कर दिया। सच में किताबों से बढ़कर कोई दोस्त नहीं होता।सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service