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*** खाद ***(लघुकथा)राहिला

"तेरी ननद, तेरे लिए भी कभी कुछ लाई या बस खाली हाथ हिलाती हुई आ जाती है सब समेटने के लिए ...? "

ससुरालियों की बातें पूछते-पूछते , जब पीहर आयी बिटिया की ननद का जिक्र आया तो अनायास शकुंतला देवी का लहजा थोड़ा तल्ख़ सा हो गया।

"अरे राम भजो अम्माँ ! कैसी बातें करती हो? वह तो छोटी हैं । लाती क्या , उल्टा भारी विदाई देनी पड़ती है। अम्माँजी की बड़ी लाड़ली बिटिया हैं।"
उसने निष्छल सी हंसी हँसते हुए बताया ।

" आय -हाय तुझे इसमें हँसी आ रही है। ठीक है..., जब तक माँ है, तब तक ऐश कर लेने दो। माँ से मायका होता है। जैसे तेरी दादी के रहते तेरी बुआ का था। "

"लेकिन अम्माँ ! बुआ तो बहुत अच्छी थीं! आपको अपने मन मे उनके लिए कड़वाहट नहीं रखनी चाहिए थी ।"
बेटी पर भतीजी हावी हो गयी।

"अरे वाह... काहे की अच्छी ? खूब भर-भर का हमने भी विदा की उसकी , लेकिन मज़ाल कभी एक तिनका भी लायी उपहार में। आखिर भाभी थे हम उनकी।" उन्होंने रुतबा जताया।


"इसका तो ये मतलब हुआ अम्माँ ! यदि बुआजी, मायका वट में खाद-पानी डालती रहती तो उनका घरौंदा तोड़ा नहीं जाता?

अम्माँ की बातों से आहत सुकु ने अपनी सहृदयी माँ को अचंभे से ताका।

"अब तू ऐसे मत देख! इससे रिश्ते मजबूत होते हैं। और ये कड़वा सत्य है।"
वह दो टूक कहने को तो कह गयीं, लेकिन बेटी के सामने अचानक दोहरे चरित्र के इस खुलासे ने उन्हें थोड़ा सा शर्मिंदा कर दिया।


"खैर ..., ये तो अपनी-अपनी सोच है अम्माँ! लेकिन यदि ये कड़वा सत्य है तो इसे नकारूंगी नहीं। " उसने कुछ ढूढ़ते हुए , गांभीर्य भाव से कहा।

"देखा-देखा..,तू भी मान गयी ना।"
बेटी की सहमति ने बात को बल दिया, तो शकुंतला देवी जबर हो गईं।
"अम्माँ..., देखो जरा ये कंगन !कैसे लगे?"
उसने बटुए में से दो कीमती कंगन अम्माँ के हाँथ में रख ख़ुश्क स्वर में पूछा।
"अरे वाह...,बहुत सुंदर कंगन हैं। बहुत मँहगे लगते हैं !! "

"हाँ बहुत महँगे हैं , बस एक नजर में पसंद आये तो अपने लिए ले लिए थे।"
" भगवान बुरी नजर से बचाये, तेरी कलाइयों में सजेगें भी खूब।"

वह बिटिया के वैभव पर बलाएं लेती हुईं बोलीं।
" अब भाभी की नजर उतारना अम्माँ! क्योंकि ये मेरी कलाइयों पर नहीं , भाभी की कलाइयों पर सजेगें।"

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Comment

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Comment by Rahila on March 4, 2018 at 4:07pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि सर जी! आपकी रचना पर उपस्थित देख कर मन हर्षित हुआ।सादर

Comment by Ravi Prabhakar on March 4, 2018 at 8:13am

सार्थक लघुकथा है राहिला जी । लघुकथा का शीर्षक चयन बहुत पसंद आया । सादर बधाई स्‍वीकार करें ।

Comment by Rahila on March 3, 2018 at 8:17pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण सर जी!

Comment by Rahila on March 3, 2018 at 8:17pm

बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश दीदी!

Comment by Rahila on March 3, 2018 at 8:16pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय कबीर साहब!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2018 at 10:56am

सिर्फ नमन...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:51pm

प्रिय राहिला जी ननद भाभी के रिश्तों को लेकर बहुत ही अच्छी लघु कथा लिखी है हार्दिक बधाई औरते ही औरतों के बीच में कलुषता भरती हैं ये बात एक दम सत्य है | 

Comment by Samar kabeer on March 1, 2018 at 2:13pm

मोहतरमा राहिला जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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