For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनसान रात में लगभग तीन घंटे दौड़ने के बाद वह सैनिक थक कर चूर हो गया था और वहीँ ज़मीन पर बैठ गया। कुछ देर बाद साँस संयत होने पर उसने अपने कपड़ों में छिपाया हुआ मोबाईल फोन निकाला। उस पर नेटवर्क की दो रेखाएं देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गयी और बिना समय गंवाये उसने अपनी माँ को फोन लगाया। मुश्किल से एक ही घंटी बजी होगी कि माँ ने फोन उठा लिया।

 

सैनिक ने हाँफते स्वर में कहा, “माँ मैं घर आ रहा हूँ।”

 

“अच्छा! तुझे छुट्टी मिल गयी? कब तक पहुंचेगा?” माँ ने ख़ुश होकर प्रश्न दागे।

 

“छुट्टी नहीं मिली, मैं बंकर छोड़ कर निकल आया हूँ।”

 

“क्यों?” माँ ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा।

 

“दुश्मनों ने कुछ सैनिकों के सिर काट दिए, उनके तड़पते शरीर को देखकर मेरी आत्मा तक कांप उठी... इसलिए मैं...” कहते हुए वह सिहर उठा।

 

“सैनिकों के सिर काट दिये...!” उसकी माँ बिलखने लगी।

 

“हाँ, और मैं वहां रहता तो मैं नहीं आता... मेरी सिरकटी लाश आती।” वह कातर स्वर में बोला

 

उसकी माँ चुप रही, वह आगे बोला, “ऐसी हालत है कि कभी हाथ-पैरों को धोना भूल जाएँ तो वे गलने लगते है, बंकर में खड़े होने की जगह नहीं मिलती, पचास फीट नीचे जाकर बर्फ को गर्म कर पानी पीते हैं, हर समय दुश्मन के हथियारों की रेंज में रहते हैं... और तिस पर ऐसी भयानक मौत के दृश्य!” उसने अपनी थकी हुई गर्दन घुमाते हुए कहा।

 

कुछ क्षणों तक चुप्पी छा गयी, फिर उसकी माँ ने गंभीर स्वर में कहा,

“सिर कटने की मौत, किसी भगौड़े की झुके हुए सिर वाली जिंदगी से तो ज़्यादा भयानक नहीं है... तू मेरे घर में ऐसे मत आना बेटा।”

 

और गर्दन घुमाते हुए उसे गर्दन के पिसने की आवाज़ सुनाई देने लगी।

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 557

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 16, 2017 at 9:29pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी साहब, आदरणीय सुरेश कुमार जी कल्याण, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब्म आदरणीय सतविन्द्र कुमार भाई जी, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदरणीय महेंद्र कुमार जी, आप सभी का सादर आभारी हूँ कि आप सभी को लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और आप सभी ने मेरा मनोबल बढाती टिप्पणी भी की| पुनः आभार|

Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 9:48am

देशप्रेम को केंद्र में रखकर बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने दरणीय चंद्रेश जी. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2017 at 11:55am

कोटि कोटि नमन

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 10:16am
आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी,सामयिक घटना से कथानक निकाल कर आपने उत्तम सन्देश का सम्प्रेषण किया है।हार्दिक बधाई स्वीकारिये!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 10:16am
आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी,सामयिक घटना से कथानक निकाल कर आपने उत्तम सन्देश का सम्प्रेषण किया है।हार्दिक बधाई स्वीकारिये!
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 6, 2017 at 10:59am
देश-भक्त सैन्य-सम्मान के लिए इस तरह की फाइन आर्ट लघुकथाग्राफ़ी का दायित्व निभाने में सफल इस समसामयिक किन्तु सर्वकालिक प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2017 at 9:46am
आदरणीय चंद्रेश जी सम्मान भरी एवं बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Mohammed Arif on May 6, 2017 at 8:12am
आदरणीय चंद्रेश जी आदाब, देशभक्ति के जज़्बै से भरपूर, कसावट कथानक और सधे संवादों वाली लघुकथा के लिए आपको ढेरों बधाईयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service