For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस लहर थामे रहे व्यवहार .....गीत/प्राची

जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल
मुक्त हों हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...

ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ
खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ
अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ...

हर ख़ुशी मुझको मिली है आप जबसे मिल गए
आस के जो फूल मुरझाए हुए थे, खिल गए
गूँजता हर पल रहे मल्हार इतना चाहती हूँ...

आप तक आवाज़ पहुँचे मैं पुकारूँ जब कभी
आप भी जब-जब पुकारें मैं चली आऊँ तभी
प्यार का विश्वास हो आधार इतना चाहती हूँ...

ख़ामियाँ मुझमें कई हैं, रह सकूँ पर बिन डरे
आपसे हर बात दिल की कह सकूँ जब मन करे
ज़िंदगी पर आपकी अधिकार इतना चाहती हूँ...

एक तट पर मैं खड़ी हूँ एक तट पर आप हैं
नाव खेते ही भँवर उठने लगेंगे श्राप हैं
बस लहर थामे रहे व्यवहार इतना चाहती हूँ...

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1013

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 4:36pm

बहुत सम्यक सुझाव आदरणीय सौरभ जी 

सादर धन्यवाद 

Comment by रामबली गुप्ता on February 16, 2017 at 12:19pm
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण गीत हुआ है आदरणीया प्राची जी। हृदय से बधाई स्वीकारें।सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 8:13pm

आपो० प्राची जी , सुन्दर गीत है , श्राप की जगह  शाप अधिक उपयक्त होगा शायद,   सादर .

Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:38pm
आदरणीया प्राची सिंह जी, बेहतरीन प्रभावोत्पादक गीत । बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 13, 2017 at 12:14am

इस गीति-प्रतीति की भावदशा विह्वल कर गयी आदरणीया. अधिकार का सात्विक स्वरूप निजता को परिपुष्ट करता हुआ भी कितना नम्र है ! भावोद्गार में समर्पण अपने उच्च स्तर पर होता हुआ भी अन्तःकरण की सत्ता के लिए सादर विशिष्टता की अपेक्षा रखता है. गीत आजके तथाकथित नारी-विमर्श जन्य उन्मुक्तता की खोखली वाचालता पर परस्पर सामंजस्य के अर्थ प्रतिस्थापित करता हुआ मनोरम बन पड़ा है. इस निरभिमानी किन्तु अदम्य साहसी गीत के लिए हार्दिक बधाइयाँ और अशेष शुभकामनाएँ, आदरणीया प्राची जी. 

जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल ... 
मुक्त हो हर बंध से यह प्यार इतना चाहती हूँ. ..

इसे यों करे न --

जानती  हूँ ज़िन्दग़ी के बंध होते हैं जटिल
मुक्त हों  हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...

ऐसा करने से सात्विक प्यार की असीम पहुँच और उसके नैतिक हेतु का पता चल सकेगा. 

शुभ-शुभ

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2017 at 9:31pm
बहुत सुन्दर गीत , बधाई , आदरणीय सुश्री डॉo प्राची सिंह जी , सादर।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 12, 2017 at 4:58pm
आदरणीया प्राची दी! सुंदर बिम्व, सधे शब्द, निखरे भाव युक्त गीत के आपको बधाई। इन पंक्तियों के लिये विशेष रूप से-
ख़ामियाँ मुझमें कई हैं, रह सकूँ पर बिन डरे
आपसे हर बात दिल की कह सकूँ जब मन करे
ज़िंदगी पर आपकी अधिकार इतना चाहती हूँ...
Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 3:28pm
आद0 प्राची जी सादर अभिवादन। आपकी बेहतरीन गीत पर ढेर सारी बधाइयाँ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 12, 2017 at 2:50pm

आदरणीया प्राची जी ..बहुत ही शानदार गीत , हर बंद लाजबाब
ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ
खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ
अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ.
\एक तट पर मैं खड़ी हूँ एक तट पर आप हैं
नाव खेते ही भँवर उठने लगेंगे श्राप हैं
बस लहर थामे रहे व्यवहार इतना चाहती हूँ... ये दो बंद बहुत ज्यादा पसंद आये सादर

Comment by Samar kabeer on February 12, 2017 at 2:36pm
मोहतरमा प्राची साहिबा आदाब,अच्छा लगा आपका गीत,बधाई स्वीकार करें ।
पहली पंक्ति में 'वायदे'कोई शब्द ही नहीं है,सही शब्द है "वादे" ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, बहतर है।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह ख़ूब, अमित जी की टिप्पणी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service