For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ------------------गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२  २१२

दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी

आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी

मांगती ही रहती है साँसे सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी

ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी

बोझ ढोता  ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली  सँवारी ज़िन्दगी

गुमनाम पिथौरागढ़ी

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2015 at 6:43am

आ0 भाई गुमनाम जी सक्रिय सदस्य मनोनीत किए जाने पर कोटि कोटि बधाई . आपकी सक्रियता इसी प्रकार बनी रहे यही कामना है

Comment by maharshi tripathi on March 18, 2015 at 9:34pm

बोझ ढोता  ही रहा परिवार का 
एक बच्चे ने भली  सँवारी ज़िन्दगी ,,,,,,वाह सर बेहद उम्दा गजल कही है आपने ,आपको हार्दिक बधाई |

Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 7:12pm

जैसा की विशेषज्ञों ने ईंगित किया ,कुछ कमियों के साथ एक भावपूर्ण गज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 10:11am

आदरणीय गुमनाम जी बेहतरीन गज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:40pm

आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल अच्छी हुई है , बधाइयाँ । आ. मिथिलेश भाई की सलाहों पर गौर कीजियेगा ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 17, 2015 at 7:54pm

दोस्तों धन्यवाद ............. अरे मैं इतनी ज्यादा गलती कर गया माफ़ी चाहता हूँ .............. आगे से पूरा ध्यान दूंगा .........

Comment by Hari Prakash Dubey on March 17, 2015 at 7:43pm

आदरणीय गुमनाम जी, खूबसूरत ग़ज़ल , बधाई !

Comment by Shyam Narain Verma on March 17, 2015 at 3:40pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
Comment by Shyam Mathpal on March 17, 2015 at 12:24pm

Aadarniya Gumnami Ji,

Jindagi par sundar rachna ke liye badhai.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 17, 2015 at 10:03am

दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी 
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी ............ सुन्दर मतला 

आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर .......... आसुओं में  यूँ  रही वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी ......... इसलिए तो लगती खारी ज़िन्दगी

मांगती ही रहती है साँसे सदा ......... मांगती रहती है साँसे ही सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी ..... हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी 

ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें 
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी ....... वाह वाह 

बोझ ढोता  ही रहा परिवार का ..........बोझ ढोता  ही रहा परिवार का 
एक बच्चे ने भली  सँवारी ज़िन्दगी ......... एक बच्चे ने  सँवारी ज़िन्दगी 

बधाई इस ग़ज़ल पर ... आदरणीय गुमनाम सर बिना तक्तीअ के जल्दबाजी में पोस्ट कर दी आपने ग़ज़ल 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service