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वह रात भर छटपटाता रहता, रटी रटाई बातोँ के सिवाय वह कुछ और बोल भी तो नही सकता था । लेकिन पिंजरें के अन्दर ही सही उसे कभी भी भूखा नही रहना पडा था । उसने सोचा, मेरा मालिक भीखू जैसे भो हो, पर मेरा पसंदीदा आहार जुटाता है, और हर तरह से अब तक मेरी हिफाजत करता  है । बन्धन मे पडना मेरा प्रारब्ध है और बिकना मेरी क्रूर नियति है । फिर भी मै अब तक जिंदा हूँ, कितना प्यार करता है भीखू  मुझे ! वो गरीब है पर फिर भी उसका व्यवहार उत्तम रहा है । भीखू ने सदा मुझे दोस्त समझा है, इसी कारण मेरे दिल मे भी उसके लिए प्यार है।

"लेकिन मै तो पंछी हूँ, आजादी मेरा जन्मजात अधिकार है । तो और कितने दिन रह सकूँगा मै इस पिंजरे मे ? मैं आखिर कब आजाद होऊँगा ?  शायद जब भीखू अपनी तंगहाली से निजात पा ले तो मुझे भी आजादी मिल जाये।"

एक सुवह भीखू पिंजरा लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ा । रास्ते मे थोड़ी  देर सुस्ताने के लिए भीखू एक पेड के नीचे बैठ गया । चेतना, आत्मज्ञान या परोपकार की भावना, जिस भी विशेषण से सम्बोधित करो लेकिन उसके मन मे अपने मालिक के उद्धार करने का संकल्प अंकुरित हुवा । तोता अजीब सी आवाज़ मे चिल्लाकर ज़मीन को कुरेदने लगा । तोते की इस हरकत से अचम्भित भीखू ने भी एकाएक उस जगह को खोदना शुरू कर दिया । थोड़ी सी खुदाई के वाद ही भीखू को ज़मीन में गड़ी हुई दौलत मिल गई, तोता अब अपनी आजादी का ख्वाब देखने लगा ।

आजकल भीखू एक अलीशान महल मे रहता है । उसके महल मे आज भी उसका तोता मौजूद है, सोने के पिंजरे में ।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Bipul Sijapati on October 27, 2014 at 12:19pm

आप सभी महानुभावोको हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by Alok Mittal on October 27, 2014 at 11:35am

बहुत सुंदर लघुकथा आपकी ..

तोता आज भी सोने के पिंजरे में रहता है ...पर आज़ादी नहीं मिली .....

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 26, 2014 at 8:06am

बहुत ही बढ़िया सन्देश देती है आपकी लघुकथा. बधाई आदरणीय विपुल जी

Comment by विनय कुमार on October 26, 2014 at 1:52am

अच्छे सन्देश वाली कहानी के लिए बधाई..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 22, 2014 at 12:11pm

तोता  अब आजादी के ख्वाब देखने लगा ---------- तोता मौजूद है सोने के पिंजरे में i  उपकार का प्रतिफल इस रूप में i कहानी का विस्तार कम करते तो कहानी और मार्मिक बनती i  कथ्य बहुत अच्छा  है और सन्देश भी i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 21, 2014 at 9:00pm

जिसकी नियति में ही कैद लिखी हो वो कहाँ आजाद हो पाते हैं कैद चाहे लोहे के पिंजरे की हो या सोने की क्या फ़र्क पड़ता है | अच्छी कहानी के लिए हार्दिक बधाई |

Comment by Shyam Narain Verma on October 21, 2014 at 1:10pm

लघु कथा पर बहुत बधाई,

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