For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छीन सकता है भला/गजल/ कल्पना रामानी

212221222122212
 

छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?

आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।

 

माँ तो होती है सभी की, जो जगत के जीव हैं,

मातृ सुख किसको मिलेगा, ये मगर लिखता नसीब।

 

कर दे राजा को भिखारी और राजा रंक को,

अर्श से भी फर्श पर, लाकर बिठा देता नसीब।

 

बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,

तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।

 

दोष हो जाते बरी, निर्दोष बन जाते सज़ा,

छटपटाते मीन बन, जिनका हुआ काला नसीब।

 

दीप जल सबके लिए, पाता है केवल कालिमा,

पर जलाते जो उसे, पाते उजालों का नसीब।

 

‘कल्पना’ फिर द्वेष कैसा, दूसरों के भाग्य से,

क्यों न शुभ कर्मों से लिक्खें, हम स्वयं अपना नसीब।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 812

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on May 22, 2014 at 7:46pm

आदरणीय मित्रों, राम शिरोमणि जी,  शिज्जु जी,  उमेशजी,  अरुण अनंतजी,  जितेंद्र जी,  आशुतोष मिश्राजी,   गिरिराज जी,  मदन मोहनजी, श्याम नरेनजी, भुवन निस्तेज जी, लक्ष्मण धामी जी, आ॰ प्राची जी, कुंती जी, प्रिय मुकेशजी, विंदु बाबू,राजेश जी, आप सबका उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 20, 2014 at 9:57am

बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,

तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।---vaah vaah 

bahut sundar ghazal kahi hai kalpna didi bahut saari badhaai aapko. 

 

Comment by Madan Mohan saxena on May 19, 2014 at 5:02pm

छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?
आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।

माँ तो होती है सभी की, जो जगत के जीव हैं,
मातृ सुख किसको मिलेगा, ये मगर लिखता नसीब।

सुन्दर ,खूबसूरत गज़ल


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 17, 2014 at 5:27pm

आदरणीया कल्पना जी,  खूब सूरत गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Vindu Babu on May 17, 2014 at 2:22pm

कर्म और नसीब का बढिया तालमेल गढ़ती हुई सुंदर गज़ल बनी है आदरणीया कल्पना दी..

आपको हार्दिक बधाई इस सार्थक रचना के लिए।

सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2014 at 2:03pm

कर दे राजा को भिखारी और राजा रंक को,

अर्श से भी फर्श पर, लाकर बिठा देता नसीब।

बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,

तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।....आदरणीया कल्पना जी ..आपकी रचनाओं में हमेशा ही कोई न कोई सन्देश होता है ..वाकई सब नसीब की ही बात है ..सादर बधाई के साथ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2014 at 10:49pm

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 4:12pm

वाह आदरणीया वाह बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश देती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने दिली से बधाइयाँ स्वीकारें.

Comment by umesh katara on May 15, 2014 at 7:46pm

बहुत सुन्दर अशआर कहे हैं वाहहहहहह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 15, 2014 at 5:47pm

खूबसूरत ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
18 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service