देहरी पर मन के
किसने रख दिए दो पाँव,
बस गया दो पल में जैसे
एक सुन्दर गाँव!
गुप्तचर आँखों ने ढूंढें
रूप के कुछ ठौर,
मन अपेक्षी हर कदम
कहता रहा, कुछ और.
कब मिले जाने इसे अब
कोई अंतिम ठांव!
चितवनों के गाँव में
बिखरे अगिन संकेत,
किन्तु जल की आड़ में
छलती गयी है रेत.
रूपसी खेलेगी मुझसे
और कितने दांव!
ले नदी सब नीर अपना
चल पड़ी किस ओर,
चंचला लहरों ने थामी
चांदनी की डोर.
झिलमिलाती चल रही है
ज़िंदगी की नाव!
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
वाह वाह .. .
इस उन्नत भाव-दशा को इतने सार्थक शब्द मिले हैं कि मन मुग्ध है.
मन की देहरी पर ठिठके किन्हीं दो पाँवों की यात्रा जो प्रारम्भ होती है वो उत्तरोत्तर रोचक होती चली जाती है. लेकिन कई बिम्ब एकदम से रोकते हैं और मन देर तक उनके गिर्द झूमता है. इस दुलकी यात्रा के दौरान दृश्यों का सुन्दर रुपायन होता है, भाईजी.
बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें.
शुभम्
बहुत सुन्दर गीत
गीत के स्थाई में कही गई बात को अंतरे ने और आगे बढाया| बिम्बों और संकेतों ने गीत को नै उंचाइयां दी हैं|
हार्दिक बधाई|
मंच पर गीतों की बयार चल पड़ी है ..मैं अभिभूत हूँ|
आपके स्रजनात्मक जीवन की नाव यूँ ही चलती रहे,सुन्दर भाव लिए कविता बनती रहे श्री सौरभ श्रीवास्तव जी
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए
वाह आदरणीय सौरभ जी बेहद सुन्दर भावाविभक्ति बेहद सुन्दर पंक्तियाँ इस सुन्दर गीत पर दिल से बधाई स्वीकारें.
चंचला लहरों ने थामी
चांदनी की डोर. इन पंक्तियों पर विशेष तौर से बधाई स्वीकारें आदरणीय
आदरणीय सौरभ श्रीवास्तव जी,
सुंदर , सहज रचना पर आपको हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर सहज शब्द चयन, सुन्दर भाव, सुप्रवाहित गठन...हार्दिक बधाई इस सुन्दर सृजन के लिए.
शुभकामनाएँ
ले नदी सब नीर अपना
चल पड़ी किस ओर,
चंचला लहरों ने थामी
चांदनी की डोर.
झिलमिलाती चल रही है
ज़िंदगी की नाव!
प्राकृतिक बिम्बों का सहारा लेकर मन की सारी बात कह डाली,,, सुंदर सुंदर
शुभकामनाये आदरणीय सौरभ जी!
अदभूत गीत ! वाह ! एक सुन्दर गाँव ...
बहुत सुन्दर आनंदित हूँ ऐसा गीत पढके श्री सौरभ जी , बहुत बहुत बधाई इस सशक्त सृजन पर --
चितवनों के गाँव में
बिखरे अगिन संकेत,
किन्तु जल की आड़ में
छलती गयी है रेत.
रूपसी खेलेगी मुझसे
और कितने दांव!
क्या मंज़र कशी है वाह वाह बेहद उम्दा !!
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