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सूरज -चंदा 
धरती हवा पानी 
आदमी गन्दा 
------
रिश्तों का खून 
पडोसी का धरम 
तेज नाखून .
----
अभी तो थी वो 
किलकारियां थमी 
रो रही थी वो !!!!!!!
--
बढ़ता धर्म 
कम होता विश्वास 
शापित कर्म 
-----
बचपन में 
खिलौने खेले कैसे 
डर मन में ...
----
अन्जाने  हाथ 
चाकलेट दिखाते 
ले गए साथ 
-----
जरूरत है 
देह दहक रही 
क्यूँ आफत है ?
---
अँधा नगर 
चौपट लोकशाही 
मचा  कहर .
-----
तन्हाईयां  हैं 
यादों की भीड़-भाड़ 
रुबाईयां है 
----
यातना -वन 
जिसका जैसा मन 
खुश -चमन 
------
बेड़ियाँ टूटे 
सामाजिक जंजीरें 
बेटियां छूटे 
----------
अरे! गुडिया 
हरी -हरी चूड़िया 
उडी चिड़िया 
----
परछाईयां 
बिटिया मां से जुदा 
शहनाईयां 
-------
कुछ तो करो 
किसान मर रहा 
खेत ही चरो 
------
जुबान बंद 
तेवर रिश्वत के 
जुगाड़चंद 
---
अविनाश बागडे 

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Comment by AVINASH S BAGDE on May 10, 2013 at 8:13pm

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2013 at 1:17pm

सामयिक विषय वस्तुओं पर विविधता लिए बहुत उत्कृष्ट हायकू ...

हार्दिक बधाई आ० अविनाश बागडे जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 28, 2013 at 9:37am

आदरणीय अविनाश जी सादर सामयिक परिस्थितियों पर सुन्दर हाइकु लिखे हैं. सभी बढ़िया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by manoj shukla on April 27, 2013 at 9:08pm
बहुत सुन्दर आदर्णीय...बधाई हो
Comment by coontee mukerji on April 27, 2013 at 12:39pm

चोटे  तीर मगर घाव कितने गम्भीर . सादर /कुंती .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:43pm
अन्जाने  हाथ 
चाकलेट दिखाते 
ले गए साथ
आदरणीय अविनाश जी 
सादर बधाई 
Comment by Vindu Babu on April 26, 2013 at 11:36am
विविध पहलुओं के समूह को हाइकू में कलात्मकता से तराश दिया आपने आदरणीय। अन्तिम हाइकू मुझे बहुत अच्छा लगा।
आदरणीय बृजेश सरजी की बात से सहमत हूं कि 'खेत ही चरो' को स्पष्ट करें महोदय। निवेदन करना चाहूंगी श्रीमान् कि
'खुश चमन'
में शायद 'खुश' की जगह 'वैसा' ज्यादा उपयुक्त होता!
प्रभावशाली सुंदर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:36am

अविनाश जी बहुत सुन्दर हाइकू! समसामयिक परिस्थितियों पर बहुत अच्छा कटाक्ष। बधाई स्वीकारें।
ये दो हाइकू मुझे स्पष्ट नहीं हो सके कि आप क्या कहना चाहते हैं?

//सूरज -चंदा 
धरती हवा पानी 
आदमी गन्दा//
 प्रथम दो पंक्तियां तीसरे से तारतम्य नहीं बिठा पायीं। 'आदमी गन्दा' यह तो स्पष्ट है लेकिन 'सूरज चंदा धरती हवा पानी' का क्या?
//कुछ तो करो 
किसान मर रहा 
खेत ही चरो//

'कुछ तो करो किसान मर रहा है' यहां तक तो ठीक है लेकिन 'खेत ही चरो' का आशय? 'कुछ तो करो' आहवाहन है 'खेत ही चरो' निर्देश?

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