For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये दिल आज भी मचलता है तुम्हारे लिए

ये दिल आज भी मचलता है तुम्हारे लिए।

अश्कों का दरिया बहता है तुम्हारे लिए।।

मैं जी नहीं पा रही हूँ तुमसे अलग होकर,
सीने में एक दर्द पिघलता है तुम्हारे लिए।।

जाने क्यों मैं आज भी ज़िंदा हूँ तुम्हारे बिन,
मैं आख़िर मर क्यों नहीं जाती तुम्हारे लिए।।

तू मेरी ज़िन्दगी,मेरी जान,मेरा सब कुछ है,
ये साँस आज भी चलती है सिर्फ़ तुम्हारे लिए।।

ताउम्र रहेगा तेरा इंतज़ार मुझको मेरे साथी,
मरकर भी ये आँखें खुली रहेंगी तुम्हारे लिए।।

उम्र भर तड़पेंगे हम तेरी चाहत में दीवानों -से,
ग़र तू न मिला,तो रूह भटकेगी तुम्हारे लिए।।

तुम्हारा साथ बहुत ज़रूरी है मेरे लिए हमदम,
इस बार नहीं तो फिर जन्म लूँगी तुम्हारे लिए।।

'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 628

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on April 26, 2013 at 8:39pm

आदरणीय अशोक जी,राजेश कुमारी जी,प्राची जी,गीतिका जी और लक्ष्मण प्रसाद जी,आप सभी को सादर नमस्कार !
आप सबके अमूल्य शब्द मेरे लिए प्रेरणास्पद हैं।यही शब्द मुझे अनवरत लेखन को प्रेरित करते हैं।ऐसे ही मुझ पर स्नेह बनाये रखियेगा।आभार !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 23, 2013 at 9:23pm

आकंठ प्रेम में डूबे मन में पुनः पुनः उसी प्रेम के लिए जन्म लेने की बात करते है, तब ही इसप्रकार के भाव 

उतपन्न होते है | ऐसी ही भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई सावित्री राठौर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 9:12pm

पागलपन की पराकाष्ठा तक प्रेम को जीती अभिव्यक्ति.. 

शुभकामनाएं 

Comment by वेदिका on April 23, 2013 at 8:11pm

ग़र तू न मिला,तो रूह भटकेगी तुम्हारे लिए
जैसे बहुत ही शिद्दत से लिखी गयी भावनाएं ....शुभकामनाएँ आदरणीया सावित्री जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 23, 2013 at 8:07pm

छोड़ दे सारी  दुनिया किसी के लिए ये मुनासिब नहीं जिंदगी के लिए -----आपकी रचना को पढ़ कर ये जबाब मन में आया ,बेंताह प्यार की गहराई में डूबी इस प्रस्तुति हेतु बधाई आपको  
 कुंती मुकर्जी जी की बात का समर्थन करुँगी| 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 5:42pm

आदरणीया सावित्री जी सादर, क्या कहूँ ये प्यार है या जूनून. सुन्दर रचना हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Savitri Rathore on April 23, 2013 at 12:13pm

आदरणीय विजय जी,कुंती जी और अभिनव जी, सादर नमस्कार!
आप सभी का मेरी रचना पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया व्यक्त कर मेरा उत्साहवर्धन करने एवं शुभकामनायें देने हेतु बहुत-बहुत आभार।

Comment by Abhinav Arun on April 22, 2013 at 2:01pm

आदरणीय सावित्री जी भावपूर्ण और मधुर रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!

Comment by coontee mukerji on April 22, 2013 at 3:23am

ये प्रेम की पराकाष्ठा  ...... हर  संवेदनशील प्रेमी ह्रदय को छू जाएगा . प्रेम की ऐसी निष्ठा आजकल है कहाँ......?  अगर यह भावनाएँ एक संदेश है तो सावित्री जी आप जीवन में बहुत सफल होंगी . शुभकामनाएँ सहित .

सादर / कुंती .

Comment by vijay nikore on April 21, 2013 at 1:09pm

आदरणीया सावित्री जी:

 

उद्विग्न हृदय की भावनाओं को अच्छा उकेरा है।

बधाई ।

 

जीवन में सुख के लिए शुभकामनाएँ और प्रार्थना।

 

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service