For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 

जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते

तो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते

*

न तिनके जलाते तमाशे की ख़ातिर

न ख़ुद आतिशों के ये बोहरान लेते

*

ये घर टूटकर क्यूँ बिखरते हमारे

जो शोरिश-पसंदों को पहचान लेते

*

फ़ना हो न जाती ये अज़्मत हमारी

जो बाँहों के साँपों को भी जान लेते

*

न होता ये मिसरा यूँ ही ख़ारिज-उल-बह्र

दुरुस्त हम अगर सारे अरकान लेते

*

"अमीर'' ऐसे सर को न धुनते कभी हम

गर आबा-ओ-अज्दाद की मान लेते

" मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 96

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on May 15, 2025 at 4:21pm

आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन में जो मजा और मुहावरे की ठसक है वो बाहों में  नहीं लगी मुझे ।  सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 8, 2025 at 9:18am

आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

बृजेश भाई... शुरू-शुरू में जब मैं ओबीओ पर नया था, तो/और इस के तीव्र वेग के कारण किनारों तक ही सीमित रहता था, तब शायद आपके या किसी अन्य सदस्य के कहने के कारण मैंने कुछेक ग़ज़लों के मुश्किल शब्दों के अर्थ दिये थे तब मैं न इस सागर की गहराई से परिचित था और न इस की समृद्धि से मगर अब, जब सौभाग्य से मैं इसकी मूल धारा में शामिल हो चुका हूँ तो... 

कठिन शब्दों के अर्थ देकर आप सभी गुणीजनों के "ज्ञान के अथाह सागर" पर संशय होने अथवा उसे कम आँकने के भाव रखने के आरोप के जोखिम नहीं ले सकता हूँ। रही बात नवागंतुकों की तो आज के युवा साहित्य या काव्य के जिज्ञासु या अभिलाषी इतनी जानकारी तो रखते ही हैं कि इन शब्दों के अर्थ कहाँ खोजने हैं, और खोजने पर भी न मिलें तो यहाँ पूछ सकते हैं... आशा है मेरे आशय को पहुँच गये होंगे। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2025 at 11:56am

आदरणीय अमीरुद्दीन जी तात्कालिक परिस्थितियों को लेकर एक बेहतरीन ग़ज़ल कही है।  उसके लिए बधाई स्वीकारें।कठिन शब्दों के अर्थ भी दे दिया करें तो आसानी होगी सीखने वालों को।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 5, 2025 at 8:23am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया... सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 4, 2025 at 6:15pm

आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 2, 2025 at 12:04am

आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया...सादर।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 2, 2025 at 12:01am

आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

//सही को मैं तो सही लेना और पढना स्वीकार करता हूँ लेकिन उर्दू क़ायदा सहीह बताता है.//

जी ज़रूर। ...वैसे मैं "सही" के भी ख़िलाफ़ नहीं हूँ। इस शे'र में बदलाव किया है, देखिएगा -

न होता ये मिसरा यूँ ही ख़ारिज-उल-बह्र

दुरुस्त आप अगर सारे अरकान लेते "    सादर।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 1, 2025 at 11:50pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब, 

ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़ है जिसे मैं हमेशा सहेज कर रखूँगा, इस ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

आपकी शायरी की गहरी समझ का मैं क़ायल हो गया हूँ, जैसा कि निलेश जी ने भी कहा कि आप ने वहीं उँगली रखी जिसे मैं सोच रहा था, - 

//फ़ना हो न जाती ये अज़्मत हमारी 

तज़लज़ुल की आहट अगर जान लेते//... अज्मत और तजलजुल के बीच राब्ता नहीं बैठ रहा, ऐसा मुझे लग रहा है अज्मत का कुछ कीजिए.//

बेशक मैं पूरी तरह सहमत हूँ, लिहाज़ा शे'र में ये बदलाव किया है देखिएगा-

"फ़ना हो न जाती ये अज़्मत हमारी 

जो बाँहों के साँपों को भी जान लेते" सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2025 at 12:34pm

अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढला देख आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद दूँ, आदरणीय अमीरुद्दीन भाई, कम होगा. हर शेर किसी बेपरवाह शख्स की आत्मग्लानि का आईना है. ऐसी गजलें, ऐसी रचनाएँ किसी पटल का गौरव हुआ करती हैं. 

मैंने अपने तईं कई मिसरों को जोड़ा-तोडा. आदत ही ऐसी है न..  लेकिन फिर आपकी सोच के अंदाज को ही स्वीकार कर लिया. 

अगर हम धुएँ को ही पहचान लेते  ... किंतु फिर लगा उठता हुआ धुआँ एक बेहतर संकेत दे रहा है. अर्थात यही सही है. 

तो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते  ...सोचा ये सरों पे क्यों ? तो समझ ने आवाज दी, हम के साथ तो कई सर ही होंगे न ! ... :-)) 

*

न तिनके जलाते तमाशे की ख़ातिर  .. कमाल का मिसरा हुआ है, साहब .. जय हो.. जय हो.. 

न ख़ुद आतिशों के ये बोहरान लेते  .. बोहरान ने तनिक परेशान किया.. फिर लगा आफत और बवाल की धमक और क्या होगी ? बोहरान ही

*

ये घर टूटकर क्यूँ बिखरते हमारे

जो शोरिश-पसंदों को पहचान लेते  ... शोरिश-पसंदों से दोस्ती. तलवारों से दोस्ती खुद की गरदन को ही भारी पड़ती है.. एक गाना भी है, नादान दोस्ती जी की जलन .. 

*

फ़ना हो न जाती ये अज़्मत हमारी  ... अज्मत और तजलजुल के बीच राब्ता नहीं  बैठ रहा, ऐसा मुझे लग रहा है अज्मत का कुछ कीजिए.

तज़लज़ुल की आहट अगर जान लेते

*

न होता ये मिसरा यूँ ही ख़ारिज-उल-बह्र

मियाँ गर सही सारे अरकान लेते   ..........  हा हा हा.. सही बात.. 

*

"अमीर'' ऐसे सर को न धुनते कभी हम

गर आबा-ओ-अज्दाद की मान लेते  ........ हर तरह की मुश्किल का सबब और है क्या बड़े-बुजुर्गों की बातें न सुनना .. 

दाद दाद दाद .. 

शुभातिशुभ 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2025 at 11:32am

आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,

अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..
सही को मैं तो सही लेना और पढना स्वीकार करता हूँ लेकिन उर्दू क़ायदा सहीह बताता है.
बाकी आप का जो भी निर्णय हो 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
47 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
58 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service