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ग़ज़ल (देखें यहीं कहीं वो मेरा साए-बान था)

221 - 2121 - 1221 - 212

देखें यहीं कहीं वो मेरा साए-बान था 

साये में जिसके मेरी ज़मीं, आस्मान था 

खंडर हुआ है आज कभी आलीशान था

ये ढेर ! हाँ यही तो वो ज़िंदा मकान था 

पामाल कर दिये हैं सभी ख़्वाब-ओ-आरज़ू 

ज़ालिम फ़क़त यही तो मेरा कुल-जहान था 

महरूमियों ने मुझ से उसे दूर कर दिया 

इतना बुरा नहीं था वो बस बद-गुमान था 

ख़ुद को तलाश करते हुई उम्र ही तमाम 

हम-सा जहाँ में कौन भला बे-निशान था 

मारा गया है वो भी महब्बत के नाम पर 

वो भी मेरी तरह ही बड़ा ख़ुश-गुमान था 

पढ़ता है जो क़सीदे यहाँ शान में तेरी 

सबसे ज़ियाद: शख़्स यही बद-गुमान था 

बर्बादियों के मेरी तमाशाई थे सभी 

हर शख़्स बे-'अमल था हर इक बे-ज़बान था  

मारे गये सभी के भरोसे 'अमीर' सब

हर एक दूसरे पे यहाँ ख़ुश-गुमान था 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 20, 2022 at 4:48pm

आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

"आलीशान" की मात्रा गणना 2221 है, लेकिन यहाँ 'आलीशान' को "ली" की मात्रा गिराकर 'आलिशान' की तरह पढ़ने की गुंजाइश है, अरूज़ के अनुसार मात्रा पतन की छूट लेकर 'आलीशान' को 2121 पर लिया है।

क्या .. दिया .. था ////// सही होगा .... जी नहीं, तक़ाबुल-ए-रदीफ़ दोष उत्पन्न हो जाएगा, धन्यवाद। 

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 20, 2022 at 4:30pm

वाह श्रीमान खूब गजल कही है वाह .. कृपया  शंका समाधान करें ;

खंडर हुआ है आज कभी आलीशान था.. ///// आलीशान की मात्रा गणना क्या होगी /////

महरूमियों ने मुझ से उसे दूर कर दिया 

इतना बुरा नहीं था वो बस बद-गुमान था 

क्या        ..    दिया .. था //////  सही होगा .. कृपया जानकारी प्रदान कर शंका समाधान करेंगे .. 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 20, 2022 at 4:19pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभारी हूँ। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2022 at 12:15pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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