For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - जा तुझे इश्क हो // -- सौरभ

२१२ २१२ २१२ २१२ 
 
पुतलियों ने कहा, जा तुझे इश्क हो
फागुनी है हवा, जा तुझे इश्क हो
 
हैं कई मायने रंग औ’ गंध के
गर नहीं ये पता, जा तुझे इश्क हो
 
चुन रहे थे सदा कौडियाँ, शंख-सीप
फिर समुंदर हँसा, ’जा तुझे इश्क हो’
 
चैत्र-बैसाख की थिर-मदिर साँझ में
टेरती है हवा.. ’जा तुझे इश्क हो’
 
देख कर ये गगन गेरुआ-गेरुआ
गा उठी है धरा, जा तुझे इश्क हो
 
उपनिषद गा रहे सुन सखे, बावरे,
एक ही फलसफा --जा तुझे इश्क हो !
 
दे किताबें मुझे जो मुहब्बत पढ़ें,
या रहूँ अनपढ़ा, जा तुझे इश्क हो
 
जिंदगी बस नहीं निरगुनी धुन-लगन
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क हो
****
सौरभ 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 548

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 30, 2022 at 12:21pm

आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी, आपको प्रस्तुति अच्छी लगी इस हेतु धन्यवाद. 

अनपढ़ा शब्द न होता कैसे प्रयुक्त होता ? किंतु, कृपया आप यह भी देखें कि इसका किस तरह से व्यवहार हुआ है.

अनपढ़ और अनपढ़ा के महीन फर्क का आपकी सुधी दृष्टि भान कर सकेगी, इसकी हमें भी अवश्य अपेक्षा है. 
अन्यथा हम सहज ही उक्त मिसरे को कुछ यों लिख सकते थे -  या मैं अनपढ़ भला, जा तुझे इश्क हो  ... 

शुभातिशुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 30, 2022 at 12:14pm

आदरणीया अनिता जी, आपका हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by Anita Maurya on March 29, 2022 at 7:22pm

वाह , क्या खूब ग़ज़ल हुई

Comment by Chetan Prakash on March 23, 2022 at 10:47am

आ. आपने सही कहा, परन्तु टंकण त्रुटि हुई ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2022 at 9:18pm

बहर-ए-मुत्दारिक मुसम्मन सालिम. आदरणीय चेतन प्रकाशजी, यह है बहर का दुरुस्त नाम. 

आपसे मिली प्रशंसा हेतु हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Chetan Prakash on March 22, 2022 at 5:08pm

आ. सौरभ साहब,  बह्रे  मुताबिक मुसम्मन  सालिम में खुबसूरत  ग़ज़ल कही आपने । हाँ, शे'र  न0.7 दो मुँहा  जान पड़ा ! सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2022 at 2:55pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी गुणग्राहकता के प्रति आभार. 

जय-जय 

Comment by Sushil Sarna on March 21, 2022 at 1:10pm
वाहहहहहह आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी बहुत ही खूबसूरत गजल बनी है । शे'र दर शे'र दाद कबूल फरमाएं सर । सादर नमन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service