For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- उफ़ किया न करे

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212 1122 1212 22

1

जो सह के ज़ुल्म हज़ारों भी उफ़ किया न करे

दुआ करो कि उसे ग़म कोई मिला न करे

2

मुझे बहार की रंगीनियाँ मिलें न मिलें

मगर ख़िज़ा ही रहे उम्र भर ख़ुदा न करे

3

मुझे वो बज़्म में चाहे मिले नहीं खुल कर

मगर मज़ाक में भी ग़ैर तो कहा न करे

4

मैं ज़र्द पत्ते सा घबरा के काँप जाता हूँ

कहे हवा से कोई तेज़ वो चला न करे

5

नशा किसी प महब्बत का यूँ भी होता है

फ़िराग सह के भी वो यार से गिला न करे

6

अगर हैं ख़ून में अय्यारियाँ,दग़ाबाज़ी

तो बात सिक़ दिली की भी वो किया न करे

सिक़- दिली, सत्यता,निष्कपटता

7

ख़ुदा से माँग ले 'निर्मल' उठा के हाथों को

किसी की आँख से आँसू कभी गिरा न करे

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 1, 2021 at 8:11pm

बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीया रचना जी...हार्दिक बधाई

Comment by Samar kabeer on March 25, 2021 at 7:24pm

'तो बात सिद्क़ दिली की भी वो किया न करे'

ये मिसरा ठीक है ।

Comment by Rachna Bhatia on March 25, 2021 at 6:43pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।

सर् ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह देने के लिए आपकी आभारी हूँ।

सर् मतला सुधारने की कोशिश करती हूँ।

'मुझे बहार की रंगीनियाँ मिलें न मिलें

मगर ख़िज़ा ही रहे उम्र भर ख़ुदा न करे'

सर् इसका सानी ठीक करके दिखाती हूँ।

'फ़िराग सह के भी वो यार से गिला न करे'

सर् "फ़िराक़" लिखना था, टाइपिंग मिस्टेक हो गई है। अमीरुद्दीन'अमीर'जी के ध्यान दिलाने पर देखा,पर तब ठीक नहीं हो सकता था।क्षमा चाहती हूँ।

'तो बात सिक़ दिली की भी वो किया न करे'

आदरणीय सर् ,फिर रेख़्ता ने ग़लत शब्द बताया है मुझे।सहीह बताने के लिए आभार।

इस मिसरअ को क्या ऐसे कर सकते हैं

"तो बात सिद्क़ दिली की भी वो किया न करे"

सादर।

Comment by Samar kabeer on March 25, 2021 at 6:17pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, ग़ौर करें ।

'मुझे बहार की रंगीनियाँ मिलें न मिलें

मगर ख़िज़ा ही रहे उम्र भर ख़ुदा न करे'

सानी बहतर किया जा सकता है ।

'फ़िराग सह के भी वो यार से गिला न करे'

इस मिसरे में 'फ़िराग' का क्या अर्थ है?

दग़ाबाज़ी

'तो बात सिक़ दिली की भी वो किया न करे'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,और 'सिक़ दिली' कोई शब्द नहीं होता यहाँ आप "सिद्क़ दिली" कहना चाहती हैं,यानी सच्चे दिल से ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 22, 2021 at 11:10am

मुहतरमा रचना भाटिया जी, कहाँ बदलाव किए हैं आपने, मैं देख नहीं पा रहा हूँ। वैसे भी आप की रचना आप ही को फाइल करनी है, बाक़ी गुणीजनों के सुझाव भी आने दीजिए। सादर। 

Comment by Rachna Bhatia on March 21, 2021 at 11:18pm

आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'जी नमस्कार। बारीकी से ग़ज़ल देखने के लिए आभार। बहुत अच्छे बदलाव आपने सुझाए हैं।एक बार सर् देखकर फाइनल कर दें बस..

सादर।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 21, 2021 at 4:22pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है मुबारकबाद पेश करता हूँ। चन्द मशविरे भी पेश करना चाहता हूँ, 

'जो सह के ज़ुल्म हज़ारों भी उफ़ किया न करे'. मतले के ऊला का शिल्प सहीह नहीं है, इसे यूंँ कह सकते हैं - 

'जो सह के ज़ुल्म हज़ारों भी बद् दुआ न करे'

दुआ करो कि उसे ग़म कोई मिला न करे

'मगर ख़िज़ा ही रहे उम्र भर ख़ुदा न करे'  इस मिसरे में ख़िज़ा को ख़िज़ाँ कर लें। 

'मुझे वो बज़्म में चाहे मिले नहीं खुल कर

 मगर मज़ाक में भी ग़ैर तो कहा न करे'    इस शे'र में थोड़ा बदलाव कर लें - 

'किसी भी बज़्म में चाहे न दे तवज्जो मुझे

 मगर मज़ाक में भी ग़ैर वो कहा न करे' 

'मैं ज़र्द पत्ते सा घबरा के काँप जाता हूँ'   इस मिसरे में 'पत्ते' को 'पत्ता' कर लें

'फ़िराग सह के भी वो यार से गिला न करे'   इस मिसरे में 'फ़िराग' को 'फ़िराक़' कर लेंं। 

'अगर हैं ख़ून में अय्यारियाँ,दग़ाबाज़ी'    इस मिसरे में शुतरगुरबा दोष है 'अय्यारियाँ,दग़ाबाज़ी' ग़ौर फ़रमाएं।

बाक़ी शुभ शुभ। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
10 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service