For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वीरांगना झलकारी देवी

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई की के साथ झलकारी बाई का नाम भी बड़ी सम्मान के लिए जाता है | एक वही थी जिन्होने रानी का हर कदम पर साथ दिया और उनकी कदकाठी कुछ मेल खाती थी |इनके बलबूते ही रानी लक्ष्मी बाई संग्राम में अंग्रेज़ो की आखों में धूल झोंकने में सफल रही | लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे की सक्षम होने के बावजूद भी इतिहासकारों ने उसे वो सम्मान नहीं दिया जिसकी वह हकदार थी | जाति व्यवस्था में दबे होने के कारण हमारे देश के बहुत से वीर-वीरांगनाए इसी सोच में दबकर गुमनाम हो गए जीने त्याग बलिदान को जानने के लिए इतिहास के पन्नो को पलटते रह जाओगे लेकिन उचित जानकारी प्राप्त होने में बहुत समय लग जाएगा | काश सभी वीर-वीरांगनाओ को इतिहासकारों ने सभी आई सरकारों ने उचित सम्मान दिया होता तो आज स्थिति कुछ और होती और हमारे गुमनाम वीरों को वो सम्मान प्राप्त होता जिसके सही में हकदार थे ऐसी एक वीर महिला थी झलकारी देवी |

 

       झलकारी देवी का जन्म 22 नवंबर, 1830 ई. को झाँसी के समीप भोजला नामक गाँव में हुआ था। झलकारी झाँसी राज्य के एक बहादुर कृषक सदोवा सिंह की पुत्री थी। उसकी माता का नाम जमुना देवी था। झलकारी देवी चमार जाति की उपजाति कोरी से सम्बन्ध रखती थी जिससे चवण वंश की ही एक शाखा कहा जाता है इतिहास कारो के अनुसार जिन्हे हम आज चामर कहते वह कभी चवर वंश के वीर क्षत्रिय हुआ करते थे लेकिन सिकंदर लोदी ने उन्हें झुकाने के लिए पहली बार चमार शव्द का उपयोग किया था तब से इस चँवर वंश को चमार जाति से पुकारा जाने लगा| जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी | झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। झलकारी देवी का अधिकांश समय प्रायः जंगल में ही काम करने में व्यतीत होता था। झलकारी के पिता ने अधिकतर जंगलों में रहने के कारण व डाकुओं के आतंक और उत्पात होते रहने कारण उन्हें घुड़सवारी और अस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा में प्रशिक्षित किया गया था| विपरीत परिस्थिति के कारण ही उन्हे शस्त्रं संचालन की शिक्षा दी थी, ताकि वह स्वयं अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर सके। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों एवं दूरस्थ गाँव में रहने के कारण कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था।

      

       एक दिन झलकारी अपने पशुओं को लेकर जंगल में गई हुई थी। अचानक एक झाड़ी में छिपे एक भयानक चीते ने उस पर आक्रमण कर दिया। उस समय झलकारी के पास केवल पशुओं को हाँकने वाली एक लाठी ही थी। बस आनन-फानन में उन्होंने सँभल कर लाठी का भरपूर वार चीते के मुँह पर किया। उनकी लाठी चीते की नाक पर लगी, जिसके कारण चीता अचेत होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। इस स्थिति का लाभ उठाकर झलकारी चीते पर इस समय तक प्रहार करती रही, जब तक कि उसकी जान नहीं निकल गई। इस घटना ने झलकारी को बहुत लोकप्रिय बना दिया।  एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। 

  

       कालांतर में उनकी शादी महारानी लक्ष्मीबाई के तोपची पूरन सिंह के साथ हो गई। पूरन भी बहुत बहादुर था और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। पूरन सिंह के कारण ही झलकारी महारानी लक्ष्मीबाई के संपर्क में आई। एक बार  गौरी पुजा के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले में गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं वही रूप वही कठ-काठी हु-ब-हु रानी लक्ष्मीबाई उन दोनो के रूप में इतनी समानता थी कि कोई भी धोखा खा जाये । जब अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया। महारानी लक्ष्मीबाई ने उनकी योग्यता, साहस एवं बुद्धिमत्ता परख उस महिला फ़ौज में भरती करवा दिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं की दुर्गा दल नामक एक अलग टुकड़ी बनाई थी। झलकारी ने थोड़े ही समय में फ़ौज के सभी कार्यों कुश्ती, घुड़सवारी और धनुर्विद्या में विशेष दक्षता प्राप्त कर ली उनकी इसी परांगता और बुद्धि कौशलता के कारण उन्हे महिला टुकड़ी का सेनापति बना दिया गया । इस दुर्गा दल की पूरी जिम्मेदारी कुश्ती, घुड़सवारी और धनुर्विद्या में माहिर झलकारीबाई के हाथों में थी। धीरे धीरे व्यक्तिगत तौर पर भी वह रानी लक्ष्मीबाई की अच्छी सलाहकार बन गई थी | झलकारीबाई ने कसम खाई थी कि जब तक झांसी स्वतंत्र नहीं होगी, न ही मैं श्रृंगार करूंगी और न ही सिन्दूर लगाऊंगी।  

 

       राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया। ब्रिटिश सेना ने झाँसी पर हमला कर दिया और उनकी सेना ने झाँसी के क़िले को चारों ओर से घेर लिया। अब दोनों सेना आमने-सामने हो गई और एक भयंकर युद्ध छिड़ गया। महारानी लक्ष्मीबाई के आदेश से झाँसी के तोपची फ़िरंगी सेना पर निरंतर अग्निवर्षा कर रही थी। सैनिक भी शत्रुओं को अपनी बंदूक का निशाना बना रहे थे। यद्यपि अँग्रेज़ी सेना क़िले के नीचे थी, तथापि संख्या भी अधिक थी और उनके पास युद्ध सामग्री का विपुल भंडार था। अँग्रेज़ी सेना के तोपची क़िले की दीवारों को तोड़ने के लिए उन्हें अपनी तोपों का निशाना बना रहा थे। अँग्रेज़ी सेना की बंदूकें भी क़िले के रक्षकों पर भयंकर गोलीवर्षा कर रही थी। क़िले के रक्षकों की संख्या निरंतर कम होती जा रही थी। लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। ऐसे समय में लक्ष्मीबाई ने युद्ध परिषद् की एक आपातकालीन बैठक बुलवाई। इसमें आगामी युद्ध के विषय में चर्चा की जा रही थी। इसी समय एक प्रहरी ने महारानी लक्ष्मीबाई को बताया कि महिला फ़ौज की एक सैनिक झलकारी उनसे मिलना चाहती है।

 

 झलकारी ने सैनिक ढंग से अभिवादन करने के बाद महारानी से निवेदन किया बाईसाहब एक विनम्र निवेदन करना चाहती हूँ अगर आज्ञा हो महारानी लक्ष्मीबाई ने कहो  झलकारी ने निवेदन करते हुए कहा कि बात यह है, बाईसाहब, हमारे सैनिकों की संख्या में निरन्तर कमी होती जा रही है। निरन्तर घिरे रहने और युद्ध चलते रहने के कारण खाद्य सामग्री भी तो समिति ही रह गई है। मेरे पति जो एक तोपची है ने मुझे यह भी बताया कि हमारे तोपचियों मे कुछ के गद्दार होने की आंशका भी है। वे लोग ब्रिटिश सैनिको को निशाना न बनाकर खाली स्थानों पर लोगों का संज्ञान करते हैं। स्थिति का लाभ उठाकर और किसी स्थान पर किले की दीवार तोड़कर यदि शत्रु सेना अन्दर आ गई तो हमें किले के अन्दर ही आमने-सामने युद्ध करना पड़ेगा। हम नहीं चाहते कि उस स्थिति में आप किसी संकट मे पड़े। झलकारी की बात सुनने के बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने उनसे पूछा कि इस संकट से निपटने के लिए तुम्हारे पास क्या योजना है?  झलकारी ने इसका उत्तर देते हुए कहा बाईसाहब अब आपको इस किले से किसी भी प्रकार बाहर हो जाना चाहिए क्योंकि ऐसे वक़्त में हमारे सेनानायक एक दूल्हेराव ने हमे दे धोखा दिया है और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया अत: जल्द ही किले का पतन होना निश्चित है इसलिए एक योजनाबद्ध तरीके से झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी और कहा कि दुश्मन को धोखे में डालने के लिए यह उचित होगा कि आपका वेश धारण करके पहले मैं छोटी-सी टुकड़ी लेकर किसी मोरचे से भागने का प्रयत्न करूँ। मुझकों रानी समझकर दुश्मन अपनी पूरी शक्ति से मुझे पकड़ने या मारने का प्रयत्न करेगा। इसी बीच दूसरी तरफ से आप किले से बाहर हो जाइए। शत्रु भ्रम में पड़ जाएगा कि असली महारानी कौन है! स्थिति का लाभ उठाकर आप सुरक्षित स्थान पर पहुँच सकती हैं और फिर सैन्य संघठन करके अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर सकती हैं। रानी लक्ष्मी बाई को झलकारी की योजना पसन्द आ गई। वह स्वयं भी किले से बाहर निकलने की योजना बना रही थी।  

 

       योजनानुसार महारानी लक्ष्मीबाई एवं झलकारी दोनों पृथक-पृथक द्वार से किले बाहर निकलीं। झलकारी ने तामझाम अधिक पहन रखा था। शत्रु ने उन्हें ही रानी समझा और उन्हें ही घेरने का प्रयत्न किया। शत्रु सेना से घिरी झलकारी भयंकर युद्ध करने लगी। मौके का लाभ उठाते हुए रानी योजनबद्ध तरीके से अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं। ब्रिटिश सैनिको ने उसे चारों ओर से घेर लिया अब रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है। जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था खुश होने लगे कि उन्होने रानी को पकड़ लिया लेकिन रानी के एक भेदिए ने पहचान लिया और उसने जनरल ह्यूग रोज़ को भेद खोलते हुए बताया कि यह रानी नहीं है बल्कि उनकी रूप में समानता रखने वाली झलकारी बाई है| यह भी बताने का प्रयत्न किया कि कुछ देर पूर्व ही झलकारी ने उसे कैसे अपनी गोली का निशाना बनाया लेकिन दुर्भाग्य से वह गोली एक ब्रिटिश सैनिक को लगी और वह गिरकर मर गया। वह भेदिया बच गया। ब्रिटिश सेनापति रोज ने झलकारी को डपटते हुए कहा कि आपने रानी बनकर हमको धोखा दिया है और महारानी लक्ष्मीबाई को यहाँ से निकालने में मदद की है। आपने हमारे एक सैनिक की भी जान ली है। मैं भी आपके प्राण लूँगा। झलकारी ने गर्व से उत्तर देते हुए कहा- मार दे गोली, मैं प्रस्तुत हूँ।  जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ | एक अन्य ब्रिटिश अफसर ने कहा -मुझे तो यह स्त्री पगली मालूम पड़ती है। जनरल रोज ने इसका तत्काल उत्तर देते हुए कहा- यदि भारत की एक प्रतिशत नारियाँ इसी प्रकार पागल हो जाएँ तो हम अंग्रेजों को सब कुछ छोड़कर यहाँ से चले जाना होगा। जनरल रोज ने झलकारी को एक तम्बु में कैद कर लिया और उनके बाहर से पहरा बिठा दिया। अवसर पाकर झलकारी रात में चुपके से भाग निकली। जनरल रोज ने प्रातः होते ही किले पर भयंकर आक्रमण कर दिया। उसने देखा कि झलकारी एक तोपची के पास खड़ी होकर अपनी बन्दूक से गोलियों कि वर्षा कर रही है।

 

       अंग्रेजी तोपची का गोला झलकारी के पास वाले तोपती को लगा। वह तोपची झलकारी का पति पूरन सिंह था अपने पति की मौत शौक मनाने की झलकारी बाई ने तुरन्त तोप संचालन का मोर्चा सम्भाल लिया और वह शत्रु सेना को विचलित करने लगी। शत्रु सेना ने भी अपनी सारी शक्ति उनके ऊपर लगा दी। इस समय एक गोला झलकारी को भी लगा और "जय भवानी" कहती हुई वह भूमि पर अपने पति के शव के समीप ही गिर पड़ी। वह अपना काम कर चुकी थी। इसी तरह मोतीबाई जो एक वैश्या की बेटी थी और लक्ष्मीबाई के वफादार और कुशल तोपची खुदाबख्स की प्रेमिका थी | वह झांसी नरेश की नृत्यशाला में नृत्य किया करती थी तथा एक अदाकारा भी थी | अनुशासन पसंद नरेश ने मोतीबाई और खुदाबख्स को अपनी सेवा से निकाल दिया राजा दामोदर की मृत्यू के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने सत्ता संभाली दोनों को सेवा में वापस नियुक्त कर लिया| मोतीबाई की कर्तव्यनिष्ठा से प्रभावित होकर उन्हें जासूसी का काम दिया गया और अंग्रेजों की राज्यों को हड़पने की योजनाओं का पता लगाने के काम में लगाया गया| मोतीबाई काफी खूबसूरत थी तथा अदाकारी भी थीं इसलिए उसे लिए यह काम काफी आसान था| दुर्गा दल की महिला सैनिको में भी एक बहुत अच्छी सैनिक और युद्ध कलाओ में निपुण थी जब युद्ध में किले की बाहरी दीवार के बाद उसने स्थिति को समझते हुए तलवार ली, और सीधे युद्ध करने का निर्णय लिया | वह देवी भवानी की तरह लड़ रही थी, और दक्ष योद्धा की तरह साहस का परिचय दे रही थी कि तभी खुदाबख्स को गोली लगी, और देखते ही देखते सभी तोपची मारे गए लेकिन यह वक़्त आंशू बहाने का नहीं था इसलिए उन्होंने तोपची की जगह ली और गोले बरसाने लगीं. अंग्रेजी सेना हक्का-बक्का रह गई | एक समय पर लगा कि अंग्रेजी सेना वापस लौट जाएगी तभी एक गोली मोतीबाई को जा लगी और वह शेरनी तरह गिर गई | इसी तरह से रानी लक्ष्मीबाई की सेना में मालती बाई लोधी की अंगरक्षिका थी जिन्होने संकट की घड़ी में रानी का साथ निभाया वह रानी की बड़ी स्नेहमयी और विश्वासपात्र थी जब रानी युद्ध में आहात हुई और उनका घोडा समरागण से विमुख हो गया तब अंगरक्षिका होने के नाते मालती बाई लोधी ने उनका रक्षा की इसी समय वालार की एक गोली उनकी पीठ पर लगी और वह वीरांगना आजादी की चढ़ने से पहले अपनी स्वामिनी की रक्षा करते हुए शहीद हो गई | महारानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना की कमांडर जूही अंत तक महारानी के साथ रही थी। जूही ने अंतिम समय तक अदम्य साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया था। वह झाँसी के क़िले से रानी के साथ ही निकल आई थी। कालपी तथा ग्वालियर में अँग्रेज़ों के साथ युद्ध में जूही ने अँग्रेज़ी सेना पर क़हर बरसा दिया। अंतिम दिन के युद्ध में जूही ने तोपख़ाने को सँभालते हुए अँग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए तब घबराकर ह्यूरोज ने अपने सैनिकों ने उसे घेर लेने का आदेश दिया। चारों ओर से घिर जाने के बाद भी जूही ने दुश्मनों के परखच्चे उड़ाते हुए उनकी कई तोपों को बेकार कर दिया। अंतिमसमय तक जूझते हुए यह वीरांगना स्वतंत्रता की बलिवेदी पर शहीद हो गई| ऐसे ही  मुन्दर, महारानी लक्ष्मी बाई की प्रिय सहेली तथा प्रमुख सलाहकारों में एक थी। यह महारानी की स्त्री सेना की कमांडर तथा रानी के रक्षा दल की नायिका थी। मुन्दर ने ब्रितानियों से हुए सभी युद्धों में रानी के साथ छाया की तरह रह कर भीषण युद्ध किया था। ग्वालियर के अंतिम दिन के युद्ध में मुन्दर ने रानी के साथ दोनों हाथों से तलवार चलाने का जौहर दिखाया। महारानी के कुछ पहले ही मुन्दर ने भी वीर गति प्राप्त की। मुन्दर का अंतिम संस्कार महारानी के साथ ही बाबा गंगा दास की कुटिया पर हुआ था। इसी तरह रानी की जनाना फौजी इंचार्ज मोतीबाई, काशीबाई और दुर्गाबाई भी दुर्गा दल की ही अन्य वीर सैनिक जिन्होने अपने प्राणो की चिंता किए बैगर अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया उनका बलिदान इतिहास में सदैव अमर रहेगा।

अप्रकाशित व मौलिक 

Views: 309

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on June 28, 2020 at 3:21pm

आद0 फूल सिंह जी सादर अभिवादन। अच्छी प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Samar kabeer on June 28, 2020 at 11:21am

जनाब फूल सिंह जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
1 hour ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service