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जब भी देखूँ वो मुझे  चाँद नज़र आता है ! 
 रोशनी बन के दिलो  जाँ मे समा जाता है !! 
 
 उस हसीं शोख़ का दीदार हुआ है जब से !
 उसका ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !! 
 
 मै मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको ! 
 मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है !! 
 
 क्यूं भला मान लूँ ये इश्क़ नहीं है उसका ! 
 छु्पके तन्हाई में  गीतों को मेरे गाता है !! 
 
 मैं तुझे चाँद कहूँ  फूल कहूँ या  खुश्बू ! 
 तेरा ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !! 
 
 आज भी उसके है सीने में मुहब्बत मेरी ! 
 जब भी मिलता है वो शरमा के निकल जाता है !! 
 
 ऐसे इन्सां पे ''रज़ा'' कैसे भरोसा करलें ! 
 करके  वादा  जो हमेशा ही  मुकर जाता है !!
9424336644
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
अच्छा प्रयास है आदरणीय SALIM RAZA साहिब , आदरणीय Samar kabeer जी एवं आदरणीय Ravi Shukla जी के सुझाव ध्यान देने योग्य हैं
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