For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

टुकड़ों में बटा आदमी - डॉo विजय शंकर

टुकड़ों में बटा आदमी 

टुकड़ों की बात करता है , 

टुकड़ों को छोटे , और छोटे 

टुकड़ों में तोड़ने की बात करता है।  

टुकड़ों से अलग अलग बात करता है , 

आज इसकी कल उसकी बात करता है 

पर टुकड़ों को जोड़ने से डरता है 

और टुकड़ों के खुद जुड़ने से भी डरता है। 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 10, 2018 at 8:18am

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ,आपकी सद्भवनाओं के लिए आभार , आपने अपनी रूचि की गहराई दिखाई। आपको बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 10, 2018 at 8:16am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी ,आपकी सद्भवनाओं एवं हार्दिक बधाई के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 10, 2018 at 8:14am

आदरणीय लक्षमण धामी ‘ मुसाफिर ’ जी , आपकी सद्भवनाओं एवं हार्दिक बधाई के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

Comment by Samar kabeer on October 9, 2018 at 2:48pm

जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,"टुकड़े" देखने और सुनने में बहुत मामूली शब्द है,लेकिन इस शब्द को इस्तेआरा बनाकर आपने उपयोगी बना दिया,बहुत ख़ूब वाह, इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on October 9, 2018 at 11:36am

आदरणीय विजय शंकर जी आदाब,

                                  बहुत भी लाजवाब कविता । बस , इतना ही कहूँगा कि-

                                                                          मेरा वजूद अगर देखना है

                                                                           तो मुझे टुकड़ों में देखना

                                                                           टुकड़ों में पाया हूँ

                                                                           किसी का टुकड़ा हूँ

                                                                           किसी का टुकड़ा खाता हूँ

                                                                          किसी के टुकड़ों पर पलता हूँ

                                                                          ग़रीबी की भट्टी में जलता हूँ

                                                                            मेरी नमक हरामी और नमक हलाली भी

                                                                               टुकड़ों पर पलती है 

.                                                                          .   अब देखना यह कि वह 

                                                                                 टुकड़ा कैसा है ?

                                                                                                          हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

                                                                                

Comment by TEJ VEER SINGH on October 9, 2018 at 11:04am

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।बेहतरीन गूढ़ संदेश देती प्रस्तुति।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 9, 2018 at 10:29am

आ0 डॉ विजय शंकर जी बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने । हार्दिक बधाई ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2018 at 9:35am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । सुंदर कविता हुयी है । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
10 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service