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अचानक याद आया --- डॉo विजय शंकर

कहते हैं गुलाब के साथ
कांटे जरूर होते हैं ,
पर कुदरत ने जीता जागता एक गुलाब ,
ऐसा भी बनाया है कि बनाने वाले की माया
कोई समझ नहीं पाया है,
उसको काँटों से बिलकुल मुक्त बनाया है,
इसे कुदरत की मेहरबानी कहें या नाइंसाफी ,
जो जिंदगी देती हैं उसकी ही जिंदगी को
इस कदर कमजोर बनाया है,
हद हो गयी आदमी ने इसी का
हर तरह से बस फायदा ही उठाया है ,
मर्द होने की अपनी जिम्मेदारियों को
बस यह कह कर निभा दिया है ,
कि हमने मेमने को बता दिया ,
घर में रहो , बाहर निकलो ही क्यों ,
कपड़े कैसे पहनो,पढ़ो क्यों, बोलो क्यों ,
छुप जाओ , छुप जाओ, छुप जाओ ,
कभी कहीं , घर में या बाहर,
भेड़िये मिलें और झपट ही पड़े तो
भेड़ियों को हरा देने को बता दिया है ,
हमने मेमने को ये बता दिया ,
हमने उसे वो बता दिया ,
हमने उसे भेड़िये से खुद को
बचा लेने को बता दिया ,
हमने उसे जान बचा लेने का हक़ दिया है,
हमने उसे ये भी बता दिया है।

मौलिक एवं अप्रकाशित
एवं सामयिक।

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 9:29pm

हमने उसे जान बचा लेने का हक़ दिया है,
हमने उसे ये भी बता दिया है।.....बहुत सार्थक ,सन्देशप्रद प्रस्तुति है सर , हार्दिक बधाई सादर ! 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2015 at 9:14pm
बस पिछले दो दिन से निर्भया प्रकरण पर फिर जो हल्ला मचा है, उसी पर लिख दिया, एक समर्पण है. आदरणीय गोपाल नारायण जी, आप समय को देखते हैं, परिवेश को पहचान लेते हैं, समर्पण का भाव रखते हैं, आपका बहुत बहुत आभार एवं ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2015 at 9:02pm
आदरणीय श्याम नारायण जी, आपका बहुत बहुत आभार, एवं ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 5, 2015 at 8:49pm

आ० विजय सर !

गुलाब के माध्यम से कितनी गहरी बात कह दी आपने ---- अति सुन्दर i

Comment by Shyam Narain Verma on March 5, 2015 at 4:42pm
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई 

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