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चाहतें - क्षणिकाएं -- डॉo विजय शंकर

ज़िन्दगी बोझ थी नहीं
अपनी ही चाहतों से
एक बोझ बना लिया
हमने ..............1.

सच में ,
चाहना तुझको था ,
तुझसे ही चाहते
रह गए .............2.


ज़िन्दगी भर
ज़िन्दगी को
ढूंढते रहे ,
वो मिली भी नहीं
और हम ज़िंदा भी रहे .....3.


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on January 25, 2017 at 2:54pm

बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएँ पेश की हैं। हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 26, 2016 at 10:04am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , मुझे पता नहीं क्यों हमेशा यही लगता है कि हर बड़ी बात बहुत सीधी सपाट और कुछ लफ्जों में बयाँ हो सकती है। बस बिना किसी कोशिश वही बात मेरे मित्रों / पाठकों तक पहुँच जाए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। आपकी बातें खुद बेहद कीमती होतीं हैं। मनोबल बढ़ाती हैं। ह्रदय से आभार , धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 26, 2016 at 10:04am
आदरणीय महेंद्र कुमार जी , रचना पसंद आई , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 26, 2016 at 10:04am
आभार एवं धन्यवाद आदरणीय बृजेश कुमार बृज जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on December 25, 2016 at 5:05pm
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,सभी क्षणिकाएं उत्तम हैं,चन्द शब्दों में बड़ी बात कहना हुनर मंदी है, और आप इस हुनर में यकता हैं ये मैं बख़ूबी जानता हूँ,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 12:19pm
आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी, अच्छी क्षणिकाएँ लिखी हैं आपने। हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 25, 2016 at 11:24am
वाह बहुत सुन्दर
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2016 at 8:02am
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , प्रस्तुति पर सुन्दर उदगार व्यक्त करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2016 at 8:02am
आदरणीय सुश्री प्रतिभा पांडेय जी , रचना को स्वीकृति एवं मान देने करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2016 at 8:02am
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , रचना को स्वीकृति एवं मान देने करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

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