For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बौना आदमी - लघुकथा -

बौना आदमी - लघुकथा -

रहीम ने अपने लंबे कुर्ते की झोली में ढेर सारे गेंहू लेकर जैसे ही घर की देहरी पर क़दम रखा, उसकी अम्मी की तेज़ नज़रों में पकड़ा गया,"रहीम यह क्या है तुम्हारे कुर्ते की झोली में?"

"अम्मीजी, इसमें गेंहू हैं।"

"गेंहू कहाँ से मिले तुम्हें?"

"अम्मीजी,चौधरी काका के खलिहान से उनकी गेंहू की फ़सल बैलगाड़ी से घर लाई जा रही थी।उनकी बोरियों में किसी बोरी में छेद रहा होगा तो उसमें से गेंहू नीचे जमीन पर गिरते जा रहे थे।मैं उस बैलगाड़ी के पीछे आ रहा था।सो मैं वह उठा लाया।"

"तो क्या तुम्हें चौधरीजी  ने ऐसा करने को बोला था?"

"नहीं अम्मी जी, उन्हें तो यह पता भी नहीं था कि इस तरह गेंहू गिर रहे हैं।"

"तो फिर तुम यह गेंहू अपने घर क्यों ले आये? कल को चौधरी को पता चला तो।तुम तो चौधरी जी की आदत और नीयत से अच्छी तरह वाक़िफ़ हो|"

"अरे वाह अम्मीजी, मैं पूरे दो घंटे इस तपती दोपहरी में गेंहू का एक एक दाना बीन कर लाया और आप उल्टा मुझे ही डाँट रही हो।"

"बेटा, किसी और की चीज़ उसकी इज़ाज़त के बिना उठा लाना गलत है।भले ही वह ज़मीन पर पड़ी हो।"

"तो क्या अब इस गेंहूं को वहीं वापस डाल आऊँ?"

"नहीं बेटा, उससे क्या लाभ होगा।मेरे विचार से इसे चौधरी जी को वापस दे आओ।"

"अम्मीजी, आप जानती हो कि चौधरी जी एक गुस्से बाज़ और झगड़ालू किस्म के आदमी है।दस तरह के सवाल करेंगे।सारा गाँव उनसे डरता है|"

"बेटा, तुमने कुछ गलत नहीं किया तो डर किस बात का? जाओ दे आओ उनके गेंहू।"

 रहीम अपनी अम्मी की हिदायत के मुताबिक वह गेंहू लेकर चौधरी जी के घर पहुंचा,"चौधरी काका,यह आपके गेंहू?"

"हमारे गेंहू।मैं कुछ समझा नहीं रहीम?"

 रहीम ने चौधरी जी को पूरा किस्सा सुनाया तो चौधरी जी दंग रह गये।

पहली बात तो यह कि चौधरी का खलिहान उनके घर से लगभग एक  किलोमीटर दूर था।इतनी तेज़ धूप में आठ साल के बच्चे द्वारा एक एक दाना गेंहू बीन कर लाना, बेहद कठिन और हौसले का कार्य था।उसके बाद गाँव के सबसे गरीब परिवार की महिला द्वारा ऐसा व्यवहार चकित कर देने वाला था।चौधरी जी यह निश्चित नहीं कर पा रहे थे कि वह क्या उत्तर दें ।चौधरी जी कुछ कहते उससे पहले ही रहीम झोली में से गेंहू चौधरी की देहलीज़ पर पलट कर जा चुका था।चौधरी जैसे दंभी और घमंडी इंसान के लिये यह एक करारा तमाचा था।एक छोटे से बच्चे ने उन्हें बौना साबित कर दिया था।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 663

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on June 14, 2019 at 12:37pm

हार्दिक आभार आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 14, 2019 at 12:36pm

हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 14, 2019 at 12:36pm

हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2019 at 6:21am

आ. भाई तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। सुंदर- संदेशपरक लघुकथा पर ढेरों बधाई ।

Comment by विनय कुमार on May 21, 2019 at 6:52pm

बहुत बढ़िया प्रेरक रचना आ तेज वीर सिंह जी, बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 21, 2019 at 12:23pm

मुह तरम तेजवीर सिंह साहिब, संदेश प्रद लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 20, 2019 at 5:58pm

हार्दिक आभार आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी।

Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2019 at 5:41pm

आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। बढ़िया और संदेशपरक लघुकथा लिखी आपने। इस लघुकथा पर ढेरों बधाई आपको।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 18, 2019 at 5:58pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।

Comment by Nita Kasar on May 18, 2019 at 4:58pm

माँ की नसीहत ने बच्चे में अच्छे संस्कार ही नहीदिये बल्कि चौधरी को दुविधा में डालकर बौना साबित कर दिया ।संदेशप्रद कथा केलिये बधाई ।आद० तेजवीर सिंह जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service