For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत-युगों से जुदा हैं नदी के किनारे-बृजेश कुमार 'ब्रज'

उन्हें कौन पूछे उन्हें कौन तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

उदासी उदासी उदासी घनेरी
विरह वेदना प्रीत की है चितेरी
अँधेरे खड़े द्वार पे सिर झुकाये
तभी रात ने स्वप्न इतने सजाये
उसी रात को छल गये चाँद तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

लगी रात की आँख भी छलछलाने
अँधेरा मगर बात कोई न माने
क्षितिज पे कहीं मुस्कुराया सवेरा
तभी रूठ कर चल दिया है अँधेरा
नजर रोज सुनसान राहें बुहारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

घटा नेह के गीत हर बार गाये
हवा बावरी राग नूतन सुनाये
मगर गीत कोई दिलासा न लाया
खबर कोई आई न मनमीत आया
ह्रदय में चुभे शूल संध्या सकारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 8:32pm

आदरणीय गिरधारी सिंह जी सादर अभिवादन स्वीकार करें...

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 10:27pm

बहुत ही सुन्दर सृजन के लिए बढ़ी स्वीकारें बृजेश कुमार 'ब्रज' जी | 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2018 at 7:41pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन स्वीकार करें..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2018 at 8:00pm

आ. भाई बृजेश जी, सुंदर गीत हुआ हो । हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 7:36pm

उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार त्रिपाठी जी..सही कहा आपने..सुधार करता हूँ..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 7:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी..जी अभी सुधार करता हूँ..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 7:34pm

सादर आभार आपके स्नेह के लिए आदरणीय डा.साहब

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 22, 2018 at 5:51pm

आ0 बहुत सुंदर गीत लिखा आपने । इसके लिए आपको बधाई । कबीर साहब ठीक कह रहे हैं मैं भी पूंछ के लिए बहुत बार टोका गया हूँ ।

Comment by Samar kabeer on December 22, 2018 at 3:57pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,अच्छा गीत हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

उन्हें कौन पूंछे उन्हें कौन तारे'

इस पंक्ति में 'पूंछे' को "पूछे" कर लें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2018 at 12:47pm

कैसे कोई भाग्य उनका सँवारे

युगों से जुदा है नदी  के किनारे ------ सुन्दर रचना  आ० ब्रज जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service