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ग़ज़ल -- नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी / दिनेश कुमार

2122---2122---2122---212
.
नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी
ग़लतियाँ राई भी हों, पर्वत बना दी जाएँगी
.
रौशनी दरकार होगी जब भी महलों को ज़रा
शह्र की सब झुग्गियाँ पल में जला दी जाएँगी
.
फिर कोई तस्वीर हाकिम को लगी है आइना
उँगलियाँ तय हैं मुसव्विर की कटा दी जाएँगी
.
इनके अरमानों की परवा अह्ले-महफ़िल को कहाँ
सुबह होते ही सभी शमएँ बुझा दी जाएँगी
.
नाम पत्थर पर शहीदों के लिखे तो जाएँगे
हाँ, मगर क़ुर्बानियाँ उनकी भुला दी जाएँगी
.
कौन मुरझाने से रोकेगा गुलों को ऐ 'दिनेश'
बुलबुलें ही बाग़ से जब सब उड़ा दी जाएँगी
.
दिनेश कुमार ( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 11, 2018 at 12:01pm

वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय...

Comment by Ajay Tiwari on November 8, 2018 at 8:38pm

आदरणीय दिनेश जी, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.  

Comment by राज़ नवादवी on November 8, 2018 at 1:18pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी आदाब, सुन्दर ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर 

Comment by Samar kabeer on November 7, 2018 at 5:25pm

जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Surkhab Bashar on November 7, 2018 at 3:29pm

आ. दिनेश कुमार जी अच्छी ग़ज़ल की तख़लीक़ हुई मुबारक बाद

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