For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे। ( ग़ज़ल- बलराम धाकड़)

चन्द अश्आर मेरे अश्क़ से बहकर उतरे।

जो पसीने में हुए तर, वही बेहतर उतरे।

तेरी यादों के यूँ तूफ़ां हैं दिलों पे क़ाबिज़,
जैसे बादल कोई पर्बत पे घुमड़कर उतरे।

स्याह रातों में तेरा ऐसे दमकता था बदन,
जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे।

मैं तुझे प्यार करूँ, और बहुत प्यार करूँ,
ऐसे जज़्बात मेरे दिल में बराबर उतरे।

ऐसी ज़ुल्मत ये सितम अब हुए आदत में शरीक़,
अब मज़ा आए अगर धड़ से मेरा सर उतरे।

उसका दिल कैसे धड़कने से करेगा इंकार,
जिसके सीने में तेरे इश्क़ का ख़ंजर उतरे।

मैं इलाही के करोबार से वाकिफ़ न हुआ,
उनको आदाब जिनके सर पे पयम्बर उतरे।

मैं अभी तक ये न समझा कि तेरे जाने के बाद,

किसतरह मेरी इन आँखों में समंदर उतरे?

~मौलिक/अप्रकाशित।

~   बलराम धाकड़ ।

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on November 1, 2018 at 3:14pm

आली मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त ही हौसला अफज़ाई कर देती है। आपके सुझावों के मुताबिक ग़ज़ल में और कोशिश करता हूँ।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on November 1, 2018 at 3:11pm

आदरणीय राज़ साहब, आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on November 1, 2018 at 3:10pm

आदरणीय विनय कुमार जी, ग़ज़ल में शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

सादर।

Comment by Samar kabeer on November 1, 2018 at 3:06pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला बराए मतला हुआ है,इसमें रदीफ़ से पूरा इंसाफ़ नहीं हुआ ।

'स्याह रातों में तेरा ऐसे दमकता था बदन,
जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे'

इस शैर में तशबीह(उपमा)ठीक नहीं,'पिघलकर छत पर उतरे' बात कुछ जँचती नहीं ।

'मैं इलाही के करोबार से वाकिफ़ न हुआ,
उनको आदाब जिनके सर पे पयम्बर उतरे'

ये शैर भर्ती का है, शिल्प और व्याकरण की दृष्टि से भी कमज़ोर है, और जनाब "पयम्बर" किसी के सर पर नहीं उतरते,ग़ौर करें ।

Comment by राज़ नवादवी on November 1, 2018 at 8:15am

आदरणीय बलराम धाकड़ जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. 

उसका दिल कैसे धड़कने से करेगा इंकार,
जिसके सीने में तेरे इश्क़ का ख़ंजर उतरे।

बहुत खूब. सादर 

Comment by विनय कुमार on October 31, 2018 at 11:23pm

वाह, वाह, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आ बलराम धाकड़ साहब, सभी शेर बेहतरीन है. बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए

Comment by Balram Dhakar on October 31, 2018 at 7:38pm

हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, जनाब सुर्खाब साहब।

सादर।

Comment by Surkhab Bashar on October 31, 2018 at 7:35pm

जनाब बलराम धाकड़ साहिब 

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ने को मिली  बहुत बहुत मुबारकबाद

Comment by Balram Dhakar on October 31, 2018 at 2:07pm

आदरणीय नीलेश जी, ग़ज़ल में शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया। 

जी हाँ, सर करोबार वाक़ई अटपटा सा लगता है लेकिन विकल्प?

उनको आदाब जिनके सर पे पयम्बर उतरे

को 

तुझको आदाब तेरे सर पे पयम्बर उतरे... ऐसा करें तो ठीक होगा क्या?

सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2018 at 12:20pm

आ. बलराम जी,
एक और उम्दा ग़ज़ल हुई है...
करोबार थोडा अटपटा लगा ..
उनको आदाब जिनके सर पे पयम्बर उतरे।.. इस मिसरे की बहर देख लें ..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
55 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service