For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"इस बार सारे हाव भाव बता रहे हैं कि बेटा ही होगा, मैं तो नेग में हीरे की अंगूठी लूँगी भाभी", मानसी ने चुहल करते हुए कहा.
वह बिस्तर पर लेटे लेटे मुस्कुरायी लेकिन उस मुस्कराहट के पीछे छिपे दर्द को मानसी ने पकड़ लिया.
"क्या बात है, इतनी ख़ुशी की बात पर भी तुम खुश नहीं हो भाभी, क्या दुबारा बेटी ही चाहिए?, मानसी ने थोड़े अचरज से पूछा.
वह सोचने लगी, स्कूल, कालेज और फिर शुरूआती नौकरी के दौरान होने वाले सभी पीड़ादायक अनुभव एक एक करके उसके जेहन में ताज़ा हो गए. हर कदम पर उसे लड़कों के छेड़ छाड़ को झेलना पड़ा था, खासकर उनकी चुभती निगाहें जो उसके चेहरे से नीचे टिकी रहती थीं. भाई उससे बड़ा था इसलिए वह उसे डांट नहीं सकती थी लेकिन माँ से उसने कई बार उसकी शिकायत की थी "माँ, भैया को मैंने कालेज के सामने कई बार देखा है लड़कियों को घूरते हुए, आप उसको डांट दीजिये". लेकिन माँ हमेशा उसे ही समझा देती "अरे लड़का है, थोड़ी मस्ती करता होगा, जाने दे. ठीक है मैं बात करती हूँ उससे", लेकिन माँ ने कभी भैया से बात नहीं की.
'अच्छा एक बात कहूँ मानसी, मेरी भी एक इच्छा है".
"क्या भाभी, अगर छोटा गिफ्ट देना चाहती हो तो भी चलेगा", मानसी ने माहौल हल्का करने की कोशिश की.
थोड़ी देर सोचने के बाद वह बोली "अगर लड़का ही पैदा हो तो काश उसकी वैसी ऑंखें नहीं हों".

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 534

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on October 4, 2018 at 4:42pm

बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by Neelam Upadhyaya on October 4, 2018 at 4:41pm

आदरणीय विनय कुमार जी, अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई  स्वीकार करें। 

Comment by विनय कुमार on October 3, 2018 at 5:09pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on October 3, 2018 at 5:09pm
आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, लघुकथा को इतने गौर से पढ़ने और उसपर अपना बहुमूल्य विचार रखने के लिए आभार. आपकी और अन्य मित्रों की टिप्पणियों को पढ़कर मैंने इसमें एक बदलाव किया है "ऑंखें" की जगह "वैसी ऑंखें" किया है. उम्मीद है अब आप सहमत होंगे. धन्यवाद
Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:03pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2018 at 6:18am

बेहतरीन रचना।.हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब। इसमें अंतिम पंक्ति कुछ ज़्यादा ही तीखी/कड़वी/अस्वाभाविक हो गई मेरी नज़र में।//काश उसकी ऑंखें नहीं हों".// की जगह कुछ और कहा जा सकता है जैसे // काश मुझे मेरी मां जैसा न बनाकर भगवान ऐसी मां साबित करा दे कि बेटे  को सही राह पर चला कर लड़कियों की आंखों का तारा सा भी बना सकूं!// ऐसा कुछ छोटा सा संवाद। सादर सुझाव मात्र। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service