For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"फ़ितरतें और गुफ़्तगू, बस!" - (लघुकथा)

दाढ़ी-मूंछधारी दोनों दोस्त, मौलवी अब्दुर्रहमान साहिब और पंडित रामनारायण जी रोज़ाना की तरह अलसुबह की चहलक़दमी कर हंसी-मज़ाक सा करते हुए अपने घरों की ओर वापस लौट रहे थे। तभी विपरीत दिशा से दिखाई दिये दिलचस्प नज़ारे पर परंपरागत संबोधन के साथ टिप्पणी करते हुए पंडित जी ने कहा - "मुल्ला जी! वो देखो तुम्हारी पड़ोसन बुरका पहन कर अपने बच्चे को श्रीकृष्ण जी की फ़ैन्सी पोशाक में स्कूल छोड़ने अकेले जा रही है पैदल!"


"उसका नहीं, उसकी पड़ोसन शर्मा मैडम का बेटा होगा पंडित जी!"


"नहीं, उसी का बेटा है, मुझे मालूम है! पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही मैनें उसकी जन्म-कुण्डली बना कर उसके अब्बूजान को दी थी!"


"ऐं! ला.. हौल.. वाला कुव्वत! ऐसा कैसे हो सकता है! नमाज़ी-परहेज़ी बीवी के कहने-समझाने पर भी वो सभी नमाज़ें अदा नहीं करता और फिर कुण्डली पे भरोसा करता है!"


"कहता था कि उसका अक़ीक़ा अदा कर क़ुरआन-ख़्वानी  करवा कर, क़ुरआन-शरीफ़ से नाम निकलवा कर उसका नाम तो रख दिया है, अब कुण्डली अपने अज़ीज़ दोस्त से ही बनवा कर कुछ आइडिया भी तो ले लूंं पहली औलाद की ज़िन्दगी से मुताल्लिक!"


"अच्छा! सुना है कि तुम अपने बच्चों को छुट्टियों में उसकी बीवी के पास उर्दू सीखने भेजते हो पंडित जी!"


"भाई! अपनी-अपनी अभिरुचि, ज़रूरत, आस्था, विश्वास और संतुष्टि की बात है!"


"बात तो सही कही पंडित जी आपने। जब हममुल्क हैं ही, तो हमें अच्छी बातें एक-दूसरे से सीखने और सिखाने में ही हमारी बेहतरी और समझदारी है! ... लेकिन अपने मज़हब और तहज़ीब से बग़ावत करके नहीं!"


"जी मुल्ला जी, कल्पना की दुनिया और फ़ैन्सी पहनावे-दिखावे से तो केवल औपचारिकतायें और क्षणिक आनंद-अनुभूति होती है न! महान धार्मिक चरित्रों की अच्छाइयां हम कहां बच्चों को सिखा पा रहे हैं!"


"यही तो मुद्दा है! जड़ें कट रही हैं मज़हबी तालीम की और मुल्क के कल्चर की; कॉम्पिटीशनों से लुत्फ़ उठाने की फ़ितरतों से! एक नई नास्तिक नस्ल की फ़सल खड़ी की जा रही है; कार्यक्रमों की आड़ में अक्सर ही सिर्फ़ लुत्फ़ उठाने के लिए!"


गुफ़्तगू करते हुए वे दोनों एक चौराहे के पास बैठ गये और बीड़ियां सुलगा कर पीने लगे। स्कूलों और ट्यूशनों की ओर जाते विद्यार्थी उन दोनों को देख मुस्कराते या उपेक्षित कर वहां से गुजरते रहे।


1-'क़ुरआन-ख़्वानी'= सामूहिक पवित्र क़़ुरआन-पाठ रिवाज़।
2-'अक़ीक़ा'= शिशु जन्म के कुछ दिनों बाद उसके मुण्डन/नामकरण आदि की परंपरा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 13, 2018 at 8:21pm

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर उपस्थित होकर, समय देकर अपनी राय सांझा करने और मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब, मुहतरमा बबीता गुप्ता साहिबा, जनाब समर कबीर साहिब और जनाब तेजवीर सिंह साहिब।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2018 at 6:19am

आ. भाई शेख उस्मानी जी, अपने आप में बहुत कुछ बोलती बेहतरीन कथा के लिए कोटि कोटि बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 11, 2018 at 12:15pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Samar kabeer on September 9, 2018 at 8:05pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by babitagupta on September 8, 2018 at 10:33pm

बेहतरीन रचना द्वारा धर्मवाद पर एक विचाराधीन  बहस. स्वीकार कीजियेगा आदरणीय शेख सरजी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service