For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों की डोर [लघुकथा]

दरवाजे की घंटी सुन,  दरवाजा मेड शीला ने  खोला तो अपरिचित समझ मुझे आवाज लगाने पर मैं देखने गई तो सामने सलिल भैया और शालिनी भाभी को  देख हतप्रद रह गई.मुझे इस तरह देख,भैया कहने लगे- 'भूल गई क्या ?मैं तुम्हारा भाई .......

मैं अपने को संभालते हुए ,उन्हें  इशारे से अंदर आने को कह,कहने लगी- 'अरे नहीं भैया,आपको अचानक इतने सालो बाद देखा ....बस और कुछ नहीं।'

भाभी मेरी मनोस्थिति  समझ भैया को डाटने वाले लहजे में कहा - 'अब ,उसे झिलाना छोडो'।और मुझे रसोई में ले जाकर खाना बनाने में हाथ बटाँने लगी.मैं भाभी को इस तरह काम करते देख सोचने लगी, आज भी बिलकुल वैसी ही हैं.मेरे जेहन में वो सब याद हो आये ,सबसे अधिक रक्षाबंधन का  दिन,कहने को रिश्ते में दूर के भाई थे, पर मुझसे बचपन से ही ,कही भी गए हो, राखी के दिन अवश्य अपनी उपस्थिति  देते थे.ये सिलसिला तब तक चला ,जब मैं इस शहर से बहुत दूर यहां आकर बस गई.शुरू-शुरू में फोन से  हालचाल मिलते रहे ,फिर यह सब कब बंद हुआ...व्यस्त जीवन शैली में ना मेरा वहां जाना हो पाया और नाही भैया-भाभी का... रिश्तों पर जगह की दूरी की हल्की सी परत जरूर चढ़ गई  थी..लेकिन यादों में हमेशा रहे.लेकिन आज इस तरह.....पूरे छब्बीस साल बाद.....अचानक भाभी की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी,क्या यादों में ही राखी बाँध दोगी ....

राखी शब्द सुन मैंने कहा- 'पर भाभी राखी तो कल हैं '.

पीछे से भैया आकर बोलने लगे- 'भई,हमारे लिए तो राखी आज ही हैं,मेरी और देख कर कहा,हैं ना..

 हां हां ... भाभी.....जल्दी से खाना हम सभी ने खाया और मैं राखी की थाली तैयार करने गई तो इधर-उधर देखने पर राखी का पैकेट नहीं मिला।

भैया की आवाज  आ रही थी-'कितनी देर और लगाओगी,ट्रेन का भी समय हो रहा हैं.....'

बस आती हूँ,राखी नहीं मिल रही पता नहीं कहा......रख दी '.

'कोई बात नहीं,कलावा तो हैं ना,लाओ मुझे दो'.

लेकिन भाभी......मेरे हाथ से कलावा ले ,झटपट दो राखी बना थाली में रखकर बोली- 'चलो ,फटाफट राखी बांधों '.

दोनों को राखी बाँधी। विदाई करते समय मेरी आँखों में आंसू आ गए तो भाभी मुझे गले लगा ली.'

अरे,पगली,बचपन से बंधे ये धागे ,धागे नहीं,बल्कि उन यादों के बुने अटूट रिश्तों की डोर ही तो हैं,जो आज मुझे तेरे पास खींच लाई...' कहते-कहते भैया का गला रुंध गया.

मैं भी दोनों की कलाई पर बंधी राखी को देख सोचने लगी - 'इस धागे में उन यादों की खुशबू ही तो बसी हैं,,,,,,,जो आज ......

मौलिक व अप्रकाशित 

बबीता  गुप्ता 

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on August 28, 2018 at 2:12pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी। बेहतरीन लघुकथा।

Comment by babitagupta on August 27, 2018 at 7:56pm

आदरणीय लक्ष्मण सरजी,समर सरजी,सुरेंद्र सरजी,शहजाद सरजी आप सभी का आभार तथा आप सभी के दिशा निर्देशन का ध्यान रखूँगी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 7:18pm

आ. बबीता जी, इस बेहतरीन कथा के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on August 27, 2018 at 6:33pm

मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें,साथ ही रक्षा बंधन की बधाई भी ।

Comment by नाथ सोनांचली on August 27, 2018 at 2:06pm

आद0 बबिता जी सादर अभिवादन। पहले तो बढ़िया कथानक को आधार बनाकर गढ़ी गयी इस लघुकथा पर आपको बधाई और राखी की अनन्त शुभकामनाएं। आपने इस लघुकथा में विराम और कोमा का सटीक उपयोग नहीं किया है जिससे कई बार भ्रम की स्थिती बनी और पढ़ते समय दुबारा पढ़कर कथानक समझना पढ़। उम्मीद है आगे से आप और बेहतर लिखेंगी। सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2018 at 1:13am

कौमा और संवादों में इन्वर्टेड कौमाज़ पर भी ध्यान दीजिएगा। सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2018 at 1:12am

आपने वाक्यों के अंत में पूर्ण विराम की जगह बिंदु का इस्तेमाल किया है। कुछ वाक्य-विन्यास पर भी पुनर्विचार किया जा सकता है आकर्षक व प्रभावशाली प्रवाह हेतु। सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2018 at 1:09am

सच्चे भावपूर्ण दायित्व निर्बाह व अभिव्यक्ति हेतु डोरा/कलावा ही राखी रूप में काफी है। यहां दूर के रिश्ते के भैया-भाभी से वर्षों बाद मिलन और राखी बंधन निर्बहन की बात बाख़ूबी सम्प्रेषित की गई है। देखा तो यह भी गया है कि दो विपरीत धर्मों के मुंहबोले भाई-बहिन भी वर्षों बाद इस अटूट पवित्र रिश्ते को रक्षाबंधन पर्व पर.यूं तरोताज़ा कर लिया करते हैं। बेहतरीन समसामयिक भावपूर्ण प्रेरक रचना के लिए हार्दिक बधाई और रक्षाबंधन/भाईदूज/भुजरिया की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं आदरणीया बबीता गुप्ता  साहिबा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service