For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिसे भी दिल मे बसाया वो चीर कर के गया--

1212 1122 1212 112

मैं किसका नाम गिनाऊँ जो पीर भर केे गया
जिसे भी दिल मे बसाया वो चीर कर के गया
किसी दीवार पे टाँगा हुआ आईना हूँ
निगाह जिसने मिलाई वही सँवर के गया
मेरी कथा भी किसी फल भरे शजर सी है
उसी ने चोट दी जो छाँव मेंं ठहर के गया
भला क्यूँ जाग रहा हूँ मैं रोज़ रातों से
न पूछियेगा कभी कौन नींद हर के गया
ग़ुरूर क्यूँ न करे खुद पे जबकि पंकज से
मिला है जो भी तबीअत से वो निखर के गया
मौलिक अप्रकाशित

Views: 772

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 31, 2018 at 7:55am

आदरणीय रवि भैया, बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on August 29, 2018 at 4:18pm

आदरणीय पंकज जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने कुछ रवानी की कमी महसूस हो रही थी वह आदरणीय समर साहब ने पूरी कर दी है उनके सलाह के मुताबिक इसे दुरुस्त करें। सादर

Comment by Samar kabeer on August 29, 2018 at 11:59am

जनाब अजय कुमार शर्मा जी जी आदाब,

देख रहा हूँ कि आजकल ओबीओ पर सोशल मीडिया की तरह टिप्पणीयाँ दी जा रही हैं,न उनमें रचनाकार को संबोधित किया जाता है,न जिस विधा में रचना होती है उसका हवाला होता है, ये ओबीओ की परिपाटी नहीं है,आप ओबीओ  के पुराने सदस्य हैं,आपसे निवेदन करता हूँ कि कृपा कर ओबीओ मंच की गरिमा का मान रखें,और हर सदस्य का ये कर्तव्य है कि जहाँ भी ऐसी टिप्पणी नज़र आये वहाँ टोकें ज़रूर, निवेदन है कि मेरी बात की गम्भीरता को समझें और इसे अन्यथा नहीं  लेंगे ।

Comment by Ajay Kumar Sharma on August 29, 2018 at 11:25am

बहुत शानदार गज़ल.

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 28, 2018 at 7:42pm

आदरणीय बाऊजी, प्रणाम....."से" के स्थान "को" ही समुचित है, संशोधन करता हूँ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2018 at 6:49pm

वाह आदरणीय मिश्र जी । बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 28, 2018 at 2:19pm

आ. भाई समर जी, कर्तव्य का भान कराने के लिए आभार ।

Comment by Samar kabeer on August 28, 2018 at 11:23am

'भला क्यूँ जाग रहा हूँ मैं रोज़ रातों से'

ये मिसरा आपने इस तरह किया है तो अंत में 'से' शब्द की जगह ' में' या "को" करना उचित होगा ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2018 at 10:48pm

आदरणीय बाऊजी बहुत सारा आभार, इस ग़ज़ल को इस्लाह के लिए ही मंच के हवाले किया है मैंने, इसीलिए इसे फेसबुक पर भी पोस्ट नहीं किया है मैंने।

आपके सुझाव के अनुरूप संशोधन अभी कर देता हूँ........प्रणाम

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2018 at 10:47pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी सर, आदरणीय लक्ष्मण सर तथा आदरणीय श्याम नारायण सर, आप सभी को रचना पर उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हार्दिक आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service