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2122 2122 2122 212

तोड़ डाला खुद को तेरी आशिकी के रोग में नहीं
तुम नहीं लिक्खे थे मेरी कुंडली के योग में

अब तेरी तस्वीर दिल से मिट गई है इस तरह
जैसे ईश्वर को भुला डाले कोई भवरोग में

तेरे ग़म की,इश्क़ की मूरत थी मुझमें,ढह गई
आ नहीं सकती ये मिट्टी अब किसी उपयोग में

मिल गया,कुछ खो गया, कुछ मिलके भी खोया रहा
साथ थी तक़दीर भी जीवन के हर संयोग में

चैन तेरे इश्क़ के बिन मिल नही पाया कहीं
तेरे ग़म में जो असर है योग में ना भोग में

अब किसे जाकर सुनाऊँ दर्द के ये तर्जुमा
तन्हा शाइर जल रहा है बेबसी में ,सोग में

ये समझ आता नही अपनो में बेगाना है कौन
मतलबी शर्तें जुड़ी है हर किसी सहयोग में

कर भला,होगा भला,अच्छा तू कर अच्छा मिले
ज़िन्दगी बेकार हो जाती है इस प्रयोग में

मौलिके और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on July 13, 2018 at 1:54pm

आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी आदाब,

                         हिंदी कवाफ़ी से सुसज्जित बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का तत्काल प्रभाव से संज्ञान लेंं ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 13, 2018 at 12:07pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मनोज अहसास जी।बेहतरीन गज़ल।

ये समझ आता नही अपनो में बेगाना है कौन
मतलबी शर्तें जुड़ी है हर किसी सहयोग में

Comment by Samar kabeer on July 13, 2018 at 11:55am

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, हिन्दी क़वाफ़ी मेअच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले में शुतरगुर्बा का दोष है, ऊला में 'तेरी' और सानी में 'तुम' देखियेगा ।

चौथे शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें 'साथ थी' ।

पांचवें शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें 'ग़म में', 'ग़म' को 'दुख' कर सकते हैं ।

अब किसे जाकर सुनाऊँ दर्द के ये तर्जुमा

इस मिसरे ने 'के' को "का" कर लें,'तर्जुमा' एक वचन है ।

तन्हा शाइर जल रहा है बेबसी में ,सोग में

इस मिसरे में  'में' को " के"कर लें ।

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