For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इन आँसुओं का कर्ज चुकाने आजा,
बिखरी हूँ मैं यूँ टूटकर उठाने आजा...

दिल से लगाके मुझको, यूँ न दूर कर तू
इक बार फिर तू मुझको सताने आजा....

अब लौट आ तू फिर से, इश्क की गली में
करके गया जो वादे निभाने आजा...

जो वेबजह है दर्मियाँ, उसको भुला दे
इक बार फिर से दिल को चुराने आजा...

सोती नहीं अब रात भर, तेरी फिकर में
इक चैन की तू नींद सुलाने आजा...

थमने लगीं साँसे मेरी, तेरे बिना अब
अरमान है तू दिल से लगाने आजा...

दम तोड़ दूँ बाहों मे तेरी, है तमन्ना
खुद को तू मुझपे आज लुटाने आजा...

आँखों में तुझको भर लूँ, अपनी इक नजर में
शव से मेरे तू कफ्न उठाने आजा...!!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 594

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 7:43am

आदरणीय विजय जी नमस्कार,

गजल पसंद  करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by vijay nikore on June 11, 2018 at 6:59am

आपकी गज़ल पढ़ कर आनन्द आया। बधाई।

Comment by रक्षिता सिंह on June 9, 2018 at 7:31pm

आदरणीय वृजेश जी नमस्कार,

गजल पर आपकी उपस्थिति के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by रक्षिता सिंह on June 9, 2018 at 7:23pm

आदरणीय तस्दीक़ जी, नमस्कार 

गजल में आपकी  शिर्कत के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

मैं  आपके द्वारा बताई  गयी त्रुटियों को सुधारने का प्रयास  करूँगी ...कृपया मार्गदर्शन बनाये रखें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 9, 2018 at 2:38pm

अन्तर्भावों को शब्दों का रूप देना ही बड़ी बात है आदरणीया..बाकि आदरणीय तस्दीक जी ने बताया ही है..शुभकामनाएं..

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 8, 2018 at 9:08pm

मुह तरमा  रक्षीता साहिबा  , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है  , आपने अरकान नहीं लिखे | मतले के हिसाब से अरकान रुबाई के हैं " मफ ऊल _मफा ईल _मफा ईलुंन _फा  ". ज़्यादा तर मिसरे बहर में नहीं हैं , ग़ज़ल और वक़्त चाहती है | कोशिश किजिए ,मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

Comment by रक्षिता सिंह on June 7, 2018 at 2:43pm
आदरणीय आरिफ जी नमस्कार,
गज़ल की सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया ....
आप जैसे गुणीजनों के क्षत्रछाया में ही यह सम्भव हो सका है, हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
Comment by Mohammed Arif on June 7, 2018 at 2:00pm

आदरणीया रक्षिता जी आदाब,

                            बहुत दिनों के बाद आपकी ग़ज़ल से रू-ब-रू होने का मौक़ा मिला । प्यार के रंग में भीगी चुनरिया की मानिंद है यह ग़ज़ल । बड़े साहस से लिखी गई ग़ज़ल । प्रेम पर लिखना इतना आसान नहीं होता । वही लिख सकता है जिसने इसकी तिश्नगी को पहले महसूस किया हो । बहुत तीव्रता है इस ग़ज़ल में । हद से गुज़रने का माद्दा भी रखती है । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
22 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service