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इन आँसुओं का कर्ज चुकाने आजा,
बिखरी हूँ मैं यूँ टूटकर उठाने आजा...

दिल से लगाके मुझको, यूँ न दूर कर तू
इक बार फिर तू मुझको सताने आजा....

अब लौट आ तू फिर से, इश्क की गली में
करके गया जो वादे निभाने आजा...

जो वेबजह है दर्मियाँ, उसको भुला दे
इक बार फिर से दिल को चुराने आजा...

सोती नहीं अब रात भर, तेरी फिकर में
इक चैन की तू नींद सुलाने आजा...

थमने लगीं साँसे मेरी, तेरे बिना अब
अरमान है तू दिल से लगाने आजा...

दम तोड़ दूँ बाहों मे तेरी, है तमन्ना
खुद को तू मुझपे आज लुटाने आजा...

आँखों में तुझको भर लूँ, अपनी इक नजर में
शव से मेरे तू कफ्न उठाने आजा...!!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 7:43am

आदरणीय विजय जी नमस्कार,

गजल पसंद  करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by vijay nikore on June 11, 2018 at 6:59am

आपकी गज़ल पढ़ कर आनन्द आया। बधाई।

Comment by रक्षिता सिंह on June 9, 2018 at 7:31pm

आदरणीय वृजेश जी नमस्कार,

गजल पर आपकी उपस्थिति के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by रक्षिता सिंह on June 9, 2018 at 7:23pm

आदरणीय तस्दीक़ जी, नमस्कार 

गजल में आपकी  शिर्कत के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

मैं  आपके द्वारा बताई  गयी त्रुटियों को सुधारने का प्रयास  करूँगी ...कृपया मार्गदर्शन बनाये रखें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 9, 2018 at 2:38pm

अन्तर्भावों को शब्दों का रूप देना ही बड़ी बात है आदरणीया..बाकि आदरणीय तस्दीक जी ने बताया ही है..शुभकामनाएं..

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 8, 2018 at 9:08pm

मुह तरमा  रक्षीता साहिबा  , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है  , आपने अरकान नहीं लिखे | मतले के हिसाब से अरकान रुबाई के हैं " मफ ऊल _मफा ईल _मफा ईलुंन _फा  ". ज़्यादा तर मिसरे बहर में नहीं हैं , ग़ज़ल और वक़्त चाहती है | कोशिश किजिए ,मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

Comment by रक्षिता सिंह on June 7, 2018 at 2:43pm
आदरणीय आरिफ जी नमस्कार,
गज़ल की सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया ....
आप जैसे गुणीजनों के क्षत्रछाया में ही यह सम्भव हो सका है, हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
Comment by Mohammed Arif on June 7, 2018 at 2:00pm

आदरणीया रक्षिता जी आदाब,

                            बहुत दिनों के बाद आपकी ग़ज़ल से रू-ब-रू होने का मौक़ा मिला । प्यार के रंग में भीगी चुनरिया की मानिंद है यह ग़ज़ल । बड़े साहस से लिखी गई ग़ज़ल । प्रेम पर लिखना इतना आसान नहीं होता । वही लिख सकता है जिसने इसकी तिश्नगी को पहले महसूस किया हो । बहुत तीव्रता है इस ग़ज़ल में । हद से गुज़रने का माद्दा भी रखती है । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद ।

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