| एक एक कर काटे डाली , ठूंठ खड़ा मन करे विचार | |
| बीत गए दिन हरियाली के , निर्जन बना पेड़ फलदार | |
| दिन भर चहल पहल रहती थी , जब होता था छायादार | |
| पास नहीं अब आये कोई , सूखा तब से है लाचार | |
| भरा रहा जब फल फूलों से , लोग आते तब सुबह शाम | |
| कोई खाये मीठे फल को , कोई पौध लगा ले दाम | |
| रंग बिरंगे खग आ आ कर , गीत सुना करते आराम | |
| दूर दूर से राही आकर , बैठ छाया करते विश्राम | |
| आया रोग सुखाया सारा , बदल दिया ऎसी हालात | |
| सोच सोच ग़म लगा सताने , उदासी में कटे दिन रात | |
| सूख सूख गिरने लगे पत्ते , पहले की बदल गई बात | |
| जलन के लिए लगे काटने , जिसकी आनी थी बारात | |
| ना जानें कब आये वो दिन ,फेंक देंगे जड़ से निकाल | |
| मिटा देंगे जग से जलाकर , फिर ना कोई पूछे हाल | |
| मिट जायेगीं सारी यादें , फिर ना करे कोई मलाल | |
| सब का हाल यहीं है वर्मा , काल चले ऐसी ही चाल | |
| श्याम नारायण वर्मा |
| (मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार | सादर
आदरणीय बृजेश कुमार जी , रचना पर प्रतिक्रिया देने के आपका हार्दिक आभार | सादर
आ. भाई श्यामनारायन जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
वाह बहुत सुन्दर और उत्तम सृजन आदरणीय..
| उत्साह वर्धन के लिये आपक आभार । सादर। |
आदरणीय सरजी,वर्तमान हो रही व्रक्षों की दशा व उनका दुःख खूब्सूर्त शब्दों में व्यान करने के लिए सधन्यवाद.
| आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय |
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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