For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 2121 1221 212

जिस दिन वो मुझसे प्यार का इजहार कर दिया ।

इस जिंदगी को और भी दुस्वार कर दिया ।।

चिंगारियों से खेलने पे कुछ सबक मिला ।

घर को जला के मैंने भी अंगार कर दिया ।।

उठने लगीं हैं उंगलियां उस पर हजार बार ।

मुझको वो जब से हुस्न का हकदार कर दिया ।।

शायद पड़ी दरार है रिश्तों की नींव में ।

किसने दिलों के बीच मे दीवार कर दिया ।।

मांगा था मैंने एक तबस्सुम भरी नज़र ।

शर्मा के उसने बात से इनकार कर दिया ।।

जीने का हक़ था चैन से जीता मैं शान से ।

बस दिल चुरा के आपने लाचार कर दिया ।।

यूँ ही तड़प के रह गया मछली की तर्ह मैं ।

जबसे निगाह से वो कई वार कर दिया ।।

देखा किया मैं उम्र तलक ख्वाब बेहिसाब।

इन चाहतों के दौर ने बीमार कर दिया ।।

शायद उतर गया है कोई चाँद बज़्म में ।

मुद्दत की ख्वाहिशों को वो गुलज़ार कर दिया ।।

छलके जो दर्द मेरी जुबाँ से कभी कभार ।

गम को मेरे तो आपने अखबार कर दिया ।।

नीलामियों के दौर से गुजरी है आशिकी ।

तुमने गरीब खाने को बाजार कर दिया ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 679

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 15, 2018 at 12:39pm

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है , हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2018 at 10:31pm

आ0 रोहित डोबरियाल मल्हार जी सादर आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2018 at 10:29pm

आ0 श्याम नारायण वर्मा जी हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2018 at 10:28pm

आ0 राम अवध विश्वकर्मा जी सादर आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2018 at 10:28pm

आ0 हर्ष महाजन साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2018 at 10:27pm

आ0 कबीर सर हार्दिक आभार के साथ सादर नमन । इस खूबसूरत इस्लाह के एक बार पुनः तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 12, 2018 at 9:15pm
Comment by Samar kabeer on April 12, 2018 at 11:14am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

रदीफ़ के हिसाब से मतले का ऊला मिसरा यूँ होना चाहिए:-

'जिस रोज़ उसने प्यार का इज़हार कर दिया'

तीसरे शैए का सानी मिसरा रदीफ़ के हिसाब से यूँ करें:-

'जब उसने मुझको हुस्न का हक़दार कर दिया'

4थे का सानी मिसरा व्याकरण की दृष्टि से ग़लत है ।

5वें के ऊला में "माँगा था" को "माँगी थी" कर लें,'नज़र' स्त्रीलिंग है न ।

9वें शैर को यूँ करें:-

'उतरा है चाँद बज़्म में देकर मुझे ख़बर

इस दिल की ख़्वाहिशात को गुलज़ार कर दिया'

एक बार फिर निवेदन है कि अशआर के साथ नम्बर डाल दिया करें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 11, 2018 at 9:18pm

आ0 उस्मानी साहब तहे दिल से शुक्रिया । वो और कर दिया । इस इशारे को थोड़ा सा और स्पष्ट करने की कृपा करें जिससे ग़ज़ल में आपेक्षित सुधार कर सकूं ।

सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 8:10pm

//वो// और //कर दिया// .. ज़रा जंच नहीं रहा रचना में मुझे।  लेकिन विधागत गेय बढ़िया पेशकश के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब। बहुत बढ़िया मतले और मक़्ते के साथ विचारोत्तेजक अशआर।‌

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service