For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...कभी तो दिल को करार आये-बृजेश कुमार 'ब्रज'

121 22 121 22 121 22 121 22
कभी जरा सा मैं मुस्कुरा लूँ कभी तो दिल को करार आये
कभी तो भूले से इस चमन में उतर के फ़स्ल-ए-बहार आये

कि इससे पहले ये साँस टूटे सफ़ीना डूबे ये ज़िन्दगी का
चले भी आओ सनम कहीं से कहाँ कहाँ हम पुकार आये

बड़ी अदा से नजर झुकाये वो पूछते हैं कहाँ थे अब तक
सुनाये कैसे वो आपबीती वो ज़िन्दगी जो गुजार आये

हजार लम्हे हजार बातें जिन्हें तड़पता ही छोड़ आया
वो शाम वो गेसुओं के साये वो याद फिर बेशुमार आये

समझ न आये विदाई की भी ये रीत कैसी है प्यारे बाबुल
अभी घड़ी खेलने की आई उठाये डोली कहार आये

अभी समेटे थे हौंसले 'ब्रज' तभी ये वैरन थकान आई
हमारे जीवन में ऐसे लम्हे न जाने क्यों बार बार आये
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 29, 2018 at 7:54pm

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय डा. साहब..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 29, 2018 at 5:27pm

आदरणीय भाई ब्रिजेश जी ग़ज़ल पढ़कर आनंद आया ..एक शेर पर थोड़ी उलझन हुयी थी लेकिन आदरणीय समर सर की प्रतिक्रिया से शंका का निवारण हो गया ..बहुत बहुत बधाई आपको सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 29, 2018 at 8:51am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय त्रिपाठी जी..

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 9:31pm

साहब शेर दर शेर उम्दा ग़ज़ल हुई हार्दिक बधाई आपको ।कबीर सर की इस्लाह काबिल ए गौर है ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 27, 2018 at 4:51pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र जी..सादर

Comment by surender insan on March 27, 2018 at 11:08am

वाह बहुत अच्छी चर्चा।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 11:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय महाजन जी..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 11:47pm

आदरणीय समर जी आज आपकी टिप्पड़ी ने मुझे प्रसन्नता से भर दिया..ह्रदय में संजो के रखूँगा आपके शब्दों को..और निश्चय ही मैं आपके बताये अनुसार सुधार करूँगा..स्नेह बनाये रखें..सादर

Comment by Harash Mahajan on March 26, 2018 at 10:52pm
  • वाह आदरणीय ब्रजेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई है ।
  • चर्चाएं भी पढ़ीं ।
  • बहुत ही ज्ञानवर्धक रहा ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on March 26, 2018 at 9:26pm

जनाब बृजेश जी ,फ़िल्मी गीतों की मिसालें मेरी नज़र में मान्य नहीं हैं,रेख़्ता पर जो ग़ज़लें आपने पढ़ी हैं वो सब या तो सही शब्द जानते नहीं या अपनी आसानी के लिए जान बूझ कर ये ग़लती कर गए,एक अच्छे और समझदार शाइर को सही शब्दों का ही इस्तेमाल करना चाहिए,प्रचलन कहकर कई लोग इस तरह की ग़लतियाँ करते हैं,लेकिन आप मेरी नज़र में ऐसे फ़नकार हैं जो ख़ूब से ख़ूब तर की तरफ़ गामज़न है, आप अपनी ग़ज़लों में सही शब्दों का ही इस्तेमाल करें ,सही शब्द "उम्र" है और आप चाहें तो इस मिसरे को इस तरह लिख सकते हैं :-

'अभी तो थी उम्र खेलने की...'

आपके विकल्प खुले हैं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service