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पता नहीं उस मिटटी के बड़े से आले में क्या तलाश रहा था थका मायूस आठ बर्षीय मोहन?कुछ गंदे फटे पुराने कपड़े और नाना की टूटी पनय्यियों के सिवा कुछ भी तो नहीं था उस आले में।अचानक उसके उदास चेहरे पे एक तेज चमक उभरी..कुछ मिला था उसे..लेकिन ये वो चीज नहीं है जिसे वो मासूम तलाश रहा था ।परंतु शायद उससे भी ज्यादा जरुरी था वो धूल मिटटी से सना हुआ रोटी का टुकड़ा।लगता है किसी चूहे ने यहाँ छोड़ा होगा।चोर निगाहों से उसने दांये बांये देखा..नहीं कोई नहीं देख रहा है..अगले ही पल वो रोटी का टुकड़ा उसकी निकर की जेब में था।एक बार फिर चारों तरफ देख तसल्ली की उसने और फिर तेजी से घर के पिछले हिस्से की ओर भागा।एक मुनासिब कोना तलाश कर कुछ पल अपनी साँसों को सयंत किया और फिर मृग शावक सी व्याकुल आँखों से इधर उधर देखा।उसे कोई नहीं देख रहा है मन को तसल्ली हुई।डर इस बात का नहीं था कि कोई रोटी देख लेगा डर था कि कोई उसकी भूख पहचान न ले जो वो छुपा रहा था।जेब से रोटी का टुकड़ा निकाल उसके ऊपर जमी धूल मिटटी को हाथों से पोंछ बड़े चाव से खाता चला गया..पता नहीं फिर कब मिले?पिछले एक पुरे दिन से कुछ भी तो नहीं था घर में खाने को।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 15, 2018 at 5:36pm

आदरणीय डा.साहब..हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ..मुझे भी लगता कुछ और बेहतर किया जा सकता है...निरंतर प्रयासरत हूँ..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 15, 2018 at 5:34pm

उचित ही फ़रमाया आपने आदरणीय सोमेश जी..आपको रचना पसंद आई आपका हार्दिक अभिनन्दन..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 15, 2018 at 12:21pm

भाई ब्रिजेश जी रचना के भाव बहुत अच्छे लगे ..मैं जिस बात पर उलझा था उस का संकेत आदरनीय शेख जी ने अपनी टिप्पणी में बखूबी क्र दिया है रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

Comment by somesh kumar on March 15, 2018 at 10:24am

lghuktha ki sbse bdi chunoti yhi hoti hai ki use gagar me sagar bhrna hota hai.km shbdon me gambhir ghav krne hote hai mujhe lgta hai islie lghuktha ka stik mulaynkn kthin hota hai.JO bhi ho aapki lghuktha achchi lgi 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 14, 2018 at 4:49pm

जी आदरणीय शेख साहब..दरअसल मुझे लगता ही लघु कथा पाठक से बात करती हुई होनी चाहिए..कोई भी लघुकथा अपने अंत में पाठक के दिलो दिमाग में एक टीस सी छोड़ती हो तो वो सफल है।जितना लगता है लघु कथा लिखना उतना आसान नहीं है।बड़ी हिम्मत कर के ये मेरा पहला प्रयास है।आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 14, 2018 at 4:44pm

आदरणीय समर जी हौसलाफजाई के लिए आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 13, 2018 at 10:10pm

भूख और भूखे पेट के हालात पर बढ़िया रचना। इसे दो तीन तरह से लिख कर देखिएगा, तो बेहतर रूप भी आप दे सकेंगे। हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।

Comment by Samar kabeer on March 13, 2018 at 9:46pm

जनाब बृजेश जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 13, 2018 at 10:03am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय महाजन जी..बस भूख से जूझते हुए एक मासूम बचपन की मनोदशा का वर्णन करने की कोशिश की..

Comment by Harash Mahajan on March 12, 2018 at 11:26pm

वाह आ0 ब्रजेश कुमार जी बहुत खूब । अच्छी लघु कथा । कथाओं का इतना जानकार तो नहीं हूँ लेकिन एक श्रोता के जानिब हर बेहतरीन कहानी का कोई उद्देश्य व संदेश ज़रूर होता है । 

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