For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़ाब इतने न दिखा दे मुझको - सलीम रज़ा रीवा

2122 1122 22

पहले ग़लती तो बता दे मुझको
फिर जो चाहे वो सज़ा दे मुझको
oo
सारी दुनिया से अलग हो जाऊँ
ख़ाब इतने न दिखा दे मुझको
oo
हो के मजबूर ग़म-ए-दौरां से
ये भी मुमकिन है भुला दे मुझको
oo
या खुदा वक़्त-ए-नज़ा से पहले
उसका दीदार करा दे मुझको
oo
साथ चलना हो 'रज़ा' नामुमकिन
ऐसी शर्तें  न सुना दे मुझको 


_____________________
 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on March 1, 2018 at 10:06pm

आपने 'वक़्ते आख़िर के साथ "है" लिया है,मेरा ऐतिराज़ उस पर है, और 'वक़्ते आख़िर ही लेना है तो मिसरा यूँ होगा:-

'वक़्त-ए-आख़िर सुकून कुछ तो मिले'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 9:56pm

आ. भाई सलीम जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2018 at 7:14pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, लफ्ज़ "आख़िर वक़्त "है जिसका मतलब नज़अ का वक़्त है , जो ख़ुद मुकम्मल लफ्ज़ है जिसमें इज़ाफत की ज़रूरत नहीं मगर मैं ने इज़ाफ़त के साथ " वक़्ते आख़िर" लिया है । इस लिए मेरे हिसाब से मिसरा सही है ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 1, 2018 at 12:39pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रज़ा रीवा साहब जी।बेहतरीन गज़ल।

सारी दुनिया से अलग हो जाऊँ 
ख़ाब इतने न दिखा दे मुझको 

Comment by SALIM RAZA REWA on March 1, 2018 at 10:44am
जनाब समर साहब इनायत के लिए शुक्रिया,
Comment by Samar kabeer on February 28, 2018 at 11:12pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल में क़ाफ़िया बन्दी के अलावा कुछ नहीं है,बहरहाल,इसके लिए बधाई लें ।

5वें शैर का ऊला मिसरा यूँ कर लें:-

'वक़्त आख़िर है सुकूँ कुछ तो मिले'

Comment by Samar kabeer on February 28, 2018 at 11:09pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब,'वक़्ते आख़िर है सुकूँ कुछ तो मिले'

आपके सुझाये इस मिसरे में 'वक़्त'शब्द में इज़ाफ़त लगने के बाद "है"शब्द की ज़रूरत नहीं,और  अगर 'है' शब्द रखा है तो इज़ाफ़त हटाना होगी,और मिसरा यूँ होगा :-

'वक़्त आख़िर है सुकूँ कुछ तो मिले'

Comment by SALIM RAZA REWA on February 27, 2018 at 11:10pm
जनाब तस्दीक़ साहब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और मशविरे के लिए शुक्रिया,
दोबारा ख़याल रहेगा कि कोई नात के शेर न आएं
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 27, 2018 at 8:29pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

शेर2 का सानी मिसरा यूँ करना सही होगा "शर्त ऐसी न सुना दे मुझको " ।

शेर5 उला मिसरा बह्र में नहीं , "यूँ कर सकते हैं ।"वक़्ते आखिर है सुकूं कुछ तो मिले"। आखरी शेर नात का है ,मेरा मश्वरा है कि ग़ज़ल में ऐसे शेर न कहें।

Comment by narendrasinh chauhan on February 27, 2018 at 11:43am

खूब सुन्दर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service