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हल्की फुल्की गीतिका(गजल)(16-16)

सर्दी की हैं जान पकौड़े
और बारिश की शान पकौड़े

पढ़-लिखकर अब क्या करना है?
जब देते सम्मान पकौड़े।

रोटी गर तुम पाना चाहो
तलो कढ़ाई तान पकौड़े।

बख्श के इज्जत हम लोगों को 
करते हैं अहसान पकौड़े।

तेज मसाला प्याज हो महँगा
खा ले क्या इंसान पकौड़े।

'राणा' मय के साथी अच्छे
बस जुमला ना मान पकौड़े।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2018 at 7:49pm

आद0 सतविंदर भाई जी सादर अभिवादन। बढिया गीतिका कही आपने। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजियेगा। इस गीतिका पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2018 at 11:45am

बहुत खूब...

Comment by Samar kabeer on February 26, 2018 at 4:00pm

जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,गीतिका का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

आरम्भिका :-

'सर्दी में तुम जान पकौड़े

बारिश की हो शान पकौड़े'

अगर रदीफ़ 'पकौड़े' रखना है तो इसे यूँ करना होगा:-

'सर्दी की हैं जान पकौड़े

और बारिश की शान पकौड़े'

4था शैर यूँ करना होगा :-

'बख़्श के इज़्ज़त हम लोगों को

करते हैं अहसान पकौड़े'

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