For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की--ये अजब क़िस्सा रहा है ज़िन्दगी में

२१२२/ २१२२/२१२२ 
.
ये अजब क़िस्सा रहा है ज़िन्दगी में
याद आता है मुझे वो बेख़ुदी में.
.
काश उन के लब मेरे होंठों को चूमें
मूँद कर आँखें.. पडा हूँ चाँदनी में.
.
जब रिहाई की कोई सूरत नहीं है
लुत्फ़ लेना सीख ही लूँ बेबसी में.
.
एक जुगनू जो लड़ा था तीरगी से    
याद कर लेना उसे भी रौशनी में.
.
याद कर के अपने माज़ी के पलों को
बहते हैं आँखों से आँसू हर ख़ुशी में.
.
आपका अहसान मुझ पर यह बहुत है
आप ने है दर्द घोला शाइरी में.
.
सोचने के वक़्त तुम को सोचता हूँ
और बाक़ी कट रही है नौकरी में.  
.
लुत्फ़ मिलता है बहुत ग़मगीन रहकर
जैसे कुछ बाक़ी नहीं हो ज़िन्दगी में.
.
निलेश "नूर"
मौलिक अप्रकाशित 

Views: 756

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:52am

शुक्रिया आ तस्दीक अहमद साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:51am

शुक्रिया आ. बसंत कुमार जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:51am

शुक्रिया आ. महेंद्र कुमार जी 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2018 at 10:20pm

जनाब नीलेश साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ

Comment by बसंत कुमार शर्मा on January 18, 2018 at 9:52pm

वाह शानदार

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2018 at 7:33pm

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है आ. निलेश सर. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2018 at 3:21pm

शुक्रिया आ. मण्डल जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2018 at 3:21pm

शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2018 at 3:20pm

शुक्रिया आ. सलीम साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2018 at 3:20pm

शुक्रिया आ. अजय तिवारी जी ..दरअसल दो तरह के मिसरे दिमाग में थे,,पढ़ा कुछ, गुनगुनाया कुछ और उँगलियों ने टाइप किया कुछ..
अभी   ठीक कर लेता हूँ..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service