For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल..रात भर-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मुतदारिक सालिम मुसम्मन बहर
212 212 212 212
आँख आँसू बहाती रही रात भर

दर्द का गीत गाती रही रात भर

आसमां के तले भाव जलते रहे
बेबसी खिलखिलाती रही रात भर

बाम पे चाँदनी थरथराने लगी
हर ख़ुशी चोट खाती रही रात भर

रूह के ज़ख्म भी आह भरने लगे
आरजू छटपटाती रही रात भर

प्यार की राह में लड़खड़ाये कदम
आशकी कसमसाती रही रात भर

आह भरते हुये राह तकते रहे
राह भी मुँह चिढ़ाती रही रात भर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 1182

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on January 8, 2018 at 1:36pm

आद0 ब्रिजेश जी सादर अभिवादन। मतला बदल दीजिये, शेष ग़ज़ल हो जाएगी।  बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर।सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 8, 2018 at 10:38am

आ ब्रजेश जी  अच्छा प्रयास है , बधाई आपको , 

Comment by SALIM RAZA REWA on January 8, 2018 at 9:21am
बृजेश भाई मतला सूझा रहा हूँ अच्छा लगे तो कर सकते हैं..

इस तरह वो सताती रही रात भर
ख़्वाब में आती जाती रही रात भर
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 8, 2018 at 6:13am

आदर्णीय बृजेश कुमार ब्रज साहब खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकारें। कभी कभी कोई धुन या मिसरा कभी सुना तो दिमाग़ में रहता है और हम जाने अनजाने ग़ज़ल कह देते हैं । उसमें वो मिसरा आ जाता है. आप मिसरा बदल दीजिए। तरही ग़ज़ल में भी हम किसी के मिसरे पर ही ग़ज़ल कहते हैं फर्क इतना है कि हम बाक़ायदा लिख देते हैं कि मिसरा किस शायर का है।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2018 at 12:21am

आदरणीय समर कबीर सादर नमस्कार..जानबूझ के नहीं अनजाने में ये इत्तफ़ाक़ हुआ है..मैंने कभी ये ग़ज़ल नहीं सुनी थी लेकिन आपकी और आदरणीय सलीम जी की टिप्पड़ी से पता चला तब नेट पे सर्च किया तो पाया फ़िल्म गमन में ये रचना है..इसके आलावा फैज़ साहब की एक ग़ज़ल भी इसी मतले पे।अब में थोड़ा संशय में हूँ क्या ऐसा करना उचित है??

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2018 at 12:15am

माफ़ कीजिये आदरणीय सलीम जी..मुझे बिलकुल भी जानकारी नहीं थी..आपकी टिप्पड़ी पढ़ने के बाद मैंने अभी नेट पे सर्च किया तब पता चला..दरअसल मैंने एक ग़ज़ल लिखी थी "आपकी याद आने लगी शाम से" उसी समय ये मिसरा भी दिमाग में कौंधा तो इसे भी लिख दिया..हालाँकि ये सिर्फ इत्तफ़ाक़ है..मैं कुछ बदलाव करने की कोशिश करता हूँ या इसे पटल से हटा लेता हूँ जैसा आप बड़े निर्देश दें..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2018 at 12:10am

हार्दिक आभार आदरणीय मोहित जी..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2018 at 12:10am

बहुत बहुत आभार आदरणीय अजय कुमार जी..सादर

Comment by Samar kabeer on January 7, 2018 at 4:01pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

"आपकी याद आती रही रात भर

चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर'

इस फ़िल्मी मतले का ऊला मिसरा क्या आपने जान बूझ कर लिया है?

'कश्तियां साहिलों से बिछड़ते हुये

दर्द का गीत गाती रही रात भर'

इस शैर के ऊला मिसरे में 'कश्तियां' शब्द बहुवचन है और रदीफ़ का शब्द 'रही' एक वचन में,यानी शुतरगुर्बा दोष,देखियेगा।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 7, 2018 at 9:25am
भाई बृजेश जी ग़ज़ल के लिए बधाई,
आपने मख दूम साहिब का मतले का पूरा मिसरा को अपना मतला बना लिया है...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service