For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  • ईमान
    ---
    -नहीं,वह नहीं आता अब।
    -‎नहीं आतता या मना किया तूने?
    -‎हाँ, मैंने ही मना किया।
    -‎क्यूँ?
    -‎क्या मतलब?
    -‎अरे! आते-जाते रहता तो कुछ भेद पता चलता रहता।
    -‎क्या?
    -‎सत्ता पक्ष से हैं न। अंदर की बातें,और क्या?
    -‎पर मुझे उससे क्या?
    -‎मुझे तो फायदा होता न री करमजली।
    -‎सही कहा तुमने ---करमजली हूँ मैं।
    -‎बात मत पकड़ री छमिया! आजकल कुर्सी सुगबुगा रही है, उलट-फेर की संभावना है।
    -‎तो फिर?
    -‎आने दे मुंडे मौलवी को।राज पता कर कि उधर क्या पक रहा है।
    -‎कभी तुमने उसे मना करने को कहा था।
    -‎हाँ, वह तब की जरूरत थी।
    -‎और मेरे लिए यह अब की भी जरूरत है।
    -‎क्यूँ?
    -‎नासमझ नहीं हो तुम।मैंने तुम्हारे 'प्यार' में अपना धंधा तक बंद कर दिया और अब तुम ऐसी बातें करते हो।
    -‎मैंने तेरे जिस्म को बिकने से बचाया है।
    -‎कभी मियां ने भी मेरी आबरू बचाने की कसम ली थी।
    -‎फिर?
    -‎फिर क्या?जैसा तू,वैसा ही वो भी निकला।
    -‎अच्छा मेरी मान।अब उसकी टोह लेती रह जरा।
    -‎मैं ईमान नहीं बेच सकती,तेरी तरह।
    -‎क्या?
    -‎हाँ, कल से नहीं,आज से ही मेरा जिस्म बिकेगा,ईमान नहीं।चल निकल साले ...हरामी कहीं के',सलमा बिफर पड़ी। टुल्ल हुए नेताजी दुम दबाकर चलते बने।
    "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 509

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on January 5, 2018 at 7:57am

शुक्रिया भाई लक्ष्मण जी।

Comment by Manan Kumar singh on January 5, 2018 at 7:56am

आभार आपका आदरणीय उस्मानीजी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2018 at 6:54am

बहुत खूब...हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 9:52am

वाह। वर्तमान माहौल पर बढ़िया रोचक और कटाक्षपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।  थोड़ा और समय देकर आप इसे और संवार सकेंगे। सादर।

Comment by Manan Kumar singh on January 3, 2018 at 7:42pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मुक्त जी।

Comment by Manan Kumar singh on January 3, 2018 at 7:42pm

आपका आभारी हूँ आदरणीया नीलम जी।

Comment by Neelam Upadhyaya on January 3, 2018 at 11:57am

आदरणीय मनन कुमार जी, क्या खूब कटाक्ष किया है आज की राजनीति पर । बधाई स्वीकार करें ।  

Comment by Manan Kumar singh on January 3, 2018 at 8:34am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आरिफ जी,नमन।

Comment by Mohammed Arif on January 2, 2018 at 11:07pm

आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,

              बहुत ही करारा कटाक्ष है । सबकुछ कह दिया आपने इशारों-इशारों में । आजकल हमारे देश में राजनीति कुछ इसी तरह संचालत हो रही है ।  हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय Richa ji"
3 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय लक्ष्मण जी"
4 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय दिनेश जी "
4 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय संजय शुक्ला जी "
5 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय ज़ैफ़ भाई "
6 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"    शिकस्त-ए-नारवा     ------------------ रिवाज के विरुद्ध काम, शायरी का एक ऐब…"
32 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  ग़ज़ल — 212 1222…"
36 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। भाई-चारा का…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service