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ग़ज़ल - करते हैं चोरी पर चोरी क्या कहने

फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा
22 22 22 22 22 2
करते हो चोरी पर चोरी क्या कहने।
ऊपर से ये सीनाजोरी क्या कहनै।

बातें तो करते हो बढ़चढ़कर लेकिन,
बातें हैं कोरी की कोरी क्या कहने।

लाँघ न पाई अपने घर की जो देहरी,
दौड़ रही वो गाँव की गोरी क्या कहने।

कार्टून फिल्में क्या आईं टीवी में,
बच्चे भूले माँ की लोरी क्या कहने।

कल जो साधू सन्त दिखाई देते थे,
वे सब निकले आज अघोरी क्या कहने।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 2, 2017 at 10:03am
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2017 at 11:04pm
हार्दिक बधाई ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 1, 2017 at 9:50pm
आदरणीय अफरोज़ सहर जी सादर आभार
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 1, 2017 at 9:48pm
आदरणीय समर कबीर साहब जी ग़ज़ल सरहना के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Afroz 'sahr' on November 1, 2017 at 6:29pm
आदरणीयराम अवध जी इस रचना पर आपको बधाई,,,
Comment by vijay nikore on November 1, 2017 at 4:53pm

गज़ल अच्छी लिखी है। बधाई।

Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 2:35pm
जनाब राम अवध जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 31, 2017 at 5:12pm
आदरणीय अजय तिवारी जी आपकी मूल्यवान टिप्पणी पर मैं विचार करूँगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया। लेकिन जहाँ तक
मैने पढ़ा है शब्द अपने मूल रूप में लिखा जाता है और शायर जैसा पढ़ता है उसके उच्चारण के अनुसार तख्ती की जाती है। अगर वह कारटून कहेगा तो कार्टून को कारटून ही माना जायेगा। अगर ऐसा नहीं है तो मैं उसे ठीक अवश्य करूँगा। सादर
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 31, 2017 at 5:02pm
आदर्णीय मन्डल जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर आभार
Comment by Ajay Tiwari on October 31, 2017 at 12:08pm

आदरणीय राम अवध जी,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

'कार्टून' को आपने अगर स्लैंग 'कारटून' के तौर पर इस्तेमाल किया है तो इसे लिखना भी 'कारटून' ही चाहिए.

सादर

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