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ग़ज़ल - इश्क में जार जार रोते हैं

फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
2122 1212 22

रात दिन बार बार रोते हैं।
इश्क में जार जार रोते हैं।

जब नशे में थे हम मज़े में थे,
जब से उतरा खुमार रोते हैं।

प्यार की अब पतंग नहीं उड़ती,
ठप्प है कारोबार रोते हैं।

आप से क्या मियाँ बताये हम
दिल हो जब बेकरार रोते हैं।

जब मैं रोता हूँ साथ में मेरे
सबके सब दोस्त यार रोते हैं।

वक्त बेवक्त उसके हाथों से,
जब भी पड़ती है मार रोते हैं।

अपने अपने सुभाव के कारण,
फूल हँसते हैं खार रोते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 31, 2017 at 12:11pm
फूल हँसते हैं खार रोते हैं ,वाह बहुत उम्दा प्रशंसनीय गजल बधाई हो
Comment by Ajay Tiwari on October 31, 2017 at 11:45am

आदरणीय राम अवध जी,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं .

सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 30, 2017 at 9:05pm

वाह , उम्दा ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय, बधाई स्वीकारें|

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 29, 2017 at 9:51pm
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज साहब बहुत बहुत शुक्रिया आपका ग़ज़ल सराहना के लिये
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2017 at 11:50am
वाह वाह आदरणीय बहुत खूबसूरत मधुर ग़ज़ल हुई ..सदर बधाई
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 27, 2017 at 2:48pm
धन्यवाद आदरणीय डा. छोटेलाल सिंह जी
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 26, 2017 at 10:00pm
आदरणीय रामअवध जी आपकी रचना बहुत बेहतरीन है पढ़ते ही मन प्रसन्न हो गया ,इस सुंदर सृजन के लिए दिल से बधाई
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 26, 2017 at 7:26pm
आदरणीय डा.आशुतोष मिश्रा जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर आभार
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 26, 2017 at 7:22pm
आदरणीय समर कबीर साहब जी
आदाब आपने जो मेरा उत्साह बढ़ाया इसके लिये बहुत बहुत शूक्रिया
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 6:31pm
आदरणीय इस उम्दा रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर

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