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जिन्हें आदत पड़ी हर बात में आँसू बहाने क़ई (ग़ज़ल)

अरकान-: मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

जिन्हें आदत पड़ी हर बात में आँसू बहाने की,
तमन्ना वो न पालें फिर किसी से दिल लगाने की

सर-ए-महफ़िल कभी पर्दा नहीं करता था वो ज़ालिम
तो फिर अब क्या ज़रूरत पड़ गई है मुँह छुपाने की

लिखूंगा बात जो सच हो बिना डर के ज़माने में,
यहीं इक शर्त थी ख़ुद से कलम अपनी उठाने की

ख़बर अपनी नहीं रहती मुझे, हालात ऐसे हैं
खबर क्यूँ पूछते हो फिर मियाँ सारे जमाने की

बना ख़ुद रास्ता अपना हुनर है तेरे हाथों में,
किसी पत्थर के आगे क्या पड़ी है गिड़गिड़ाने की

भले जाएँ कहीं भी आसमाँ में उड़ के ये पंछी
नहीं वो भूलते हैं राह अपने आशियाने की

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Mohammed Arif on October 24, 2017 at 10:50pm
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल का मुज़ाहिरा । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 24, 2017 at 6:12pm
भाई सुरेन्द्र जी आपकी गजल वाकई बहुत बेहतरीन है इस लाजबाब गजल के लिए आप बधाई स्वीकार करें ,आपकी गजल जब मैं पढ़ता हूँ तो मन झूम उठता है
Comment by नाथ सोनांचली on October 24, 2017 at 4:06pm
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपकी सीख और निरन्तर प्रोत्साहन का ही नतीजा है मैं भी कुछ कहने योग्य बन पाया हूँ। आप हमारे मार्गदर्शक हैं। आपसे प्रशंसा पाकर मेरी लेखनी धन्य हुयी। आत्मीय दाद और बधाई के लिए हृदयसे आभार।
Comment by Samar kabeer on October 24, 2017 at 3:05pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 24, 2017 at 1:06pm
आद0 जयनित कुमार मेहता जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी आत्मीय प्रशंशा और बधाई के लिए हृदय तल से आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on October 24, 2017 at 1:05pm
आद0 भाई नीलेश जी सादर अभिवादन, आपकी लगातार प्रोत्साहन से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है। बधाई के लिए आभार
Comment by जयनित कुमार मेहता on October 24, 2017 at 12:52pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2017 at 12:48pm

अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई भाई सुरेन्द्र नाथ जी.. कलम उर्दू में पुल्लिंग होता है अत: अपना कर लें ..
सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on October 24, 2017 at 11:34am
आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन।ग़ज़ल पर आपकी प्रशंशा पाकर गदगद हूँ, आपका हृदय तल से आभार।
Comment by Ajay Tiwari on October 24, 2017 at 11:17am

आदरणीय सुरेन्द्र जी 

बना ख़ुद रास्ता अपना हुनर है तेरे हाथों में,
किसी पत्थर के आगे क्या पड़ी है गिड़गिड़ाने की

बहुत खूब...  बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर

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