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समय का चक्कर (कटाक्षिकाएँ)

(1) समय के
मोबाइल फोन पर
सिकुड़ती हुई
संवेदना के वायब्रेशन है ।
(2) समय के
जल की शिराओं में
भविष्य का दौड़ता
जल संकट है ।
(3) समय के
दाम्पत्य पर
अलगाव की
लकीरें है ।
(4) समय की कॉकटेल में
महानगर के
बीयर-बार में
नियॉन रोशनी में
तनाव मुक्ति की
शराब उडेली
जा रही है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on October 11, 2017 at 10:32pm
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, कटाक्षिकाओं पर अपनी टिप्पणी देकर सार्थक बनाने का बहुत-बहुत शुक्रिया शुरू की पंक्ति में संशोधन कर लूँगा । अभी नेट की दिक्कत है ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 11, 2017 at 8:25pm
जनाब आरिफ साहब..
क्या लिखा गया है....
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 2:46pm

बहुत सुंदर क्षणिकाएं | हार्दिक बधाई आदरणीय 

Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 2:39pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,क्षणिकाओं को एक नया नाम दिया आपने "कटाक्षिकाएँ" बहुत पसंद आया ।
अच्छी कटाक्षिकाएँ लिखीं आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
पहली कटाक्षिका की अंतिम पंक्ति में 'के' की जगह 'का' कर लें ।
Comment by Mohammed Arif on October 11, 2017 at 11:37am
आदरणीय बृजेश कुमार जी आपकी
सटीक और उत्साहवर्धक टिप्पणी का बहुत-बहुत आभार ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2017 at 11:18am
वक़्त के कैनवास पर जीवन के रेखाचित्र को बखूबी उकेरा है आदरणीय..बधाई

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