For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - चाहे आँखों लगी, आग तो आग है.. // --सौरभ

२१२ २१२ २१२ २१२

 

फिर जगी आस तो चाह भी खिल उठी
मन पुलकने लगा नगमगी खिल उठी
 
दीप-लड़ियाँ चमकने लगीं, सुर सधे..
ये धरा क्या सजी, ज़िन्दग़ी खिल उठी
 
लौट आया शरद जान कर रात को
गुदगुदी-सी हुई, झुरझुरी खिल उठी
 
उनकी यादों पगी आँखें झुकती गयीं
किन्तु आँखो में उमगी नमी खिल उठी
 
है मुआ ढीठ भी.. बेतकल्लुफ़ पवन..
सोचती-सोचती ओढ़नी खिल उठी
 
चाहे आँखों लगी.. आग तो आग है..
है मगर प्यार की, हर घड़ी खिल उठी
  
फिर से रोचक लगी है कहानी मुझे
मुझमें किरदार की जीवनी खिल उठी
 
नौनिहालों की आँखों के सपने लिये
बाप इक जुट गया, दुपहरी खिल उठी
*****************
-सौरभ

Views: 2243

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2017 at 1:02am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by दिनेश कुमार on October 11, 2017 at 5:24pm
//पवन पुरवाई चल रही है आस पास // ☺☺
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 10, 2017 at 4:35pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on October 10, 2017 at 2:36pm

एक पुराना क़िस्सा 'पवन'शब्द पर, जो पहले भी मंच पर साझा कर चुका हूँ फिर दुहराता हूँ,  जिसका उल्लेख सौरभ भाई ने सिनेमामई संस्कृति के हवाले से किया है ।
हुआ यूँ कि मशहूर शाइर 'मजरूह'सुल्तानपुरी ने डॉ.विद्या फिल्म में एक गीत लिखा,जिसके बोल थे'पवन दिवानी,न माने उड़ाये घुंघटा'जो सुपर हिट हुआ,उसके कुछ दिन बाद एक पार्टी में मजरूह साहिब की मुलाक़ात मशहूर कवि पण्डित 'भरत व्यास' से हुई तो,व्यास जी ने मजरूह साहिब से कहा,'ये आपने गीत में क्या लिख दिया,'पवन दिवानी'?ये बात सुनकर मजरूह साहिब की पैशानी पर बल पड़ गए,वो बोले,क्या गलत लिख दिया ?व्यास जी ने कहा, 'आपको लिखना था "पवन दिवाना"क्योंकि 'पवन'शब्द पुल्लिंग है',ये सुनकर मजरूह साहिब शर्मिंदा हुए और कहा,'भाई मैंने उर्दू के लिहाज़ से पवन शब्द को 'हवा'की तरह स्त्रीलिंग ले लिया'मगर अब क्या हो सकता है,गीत तो चल निकला,फिर उसके बाद मजरूह साहिब ने 1966 में फिल्म 'शागिर्द'के लिए एक गीत लिखा'उड़के पवन के संग चलूँगी'ये गीत भी बहुत मक़बूल हुआ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2017 at 1:15pm

स्पष्ट रूप से अपनी बातें रखने के लिए हार्दिक धन्यवाद भाई दिनेश जी. पवन को सिनेमाई संस्कृति ने स्त्रीलिंग के दर्ज़े में रखवा दिया है. पवन को पुल्लिंग संज्ञा में रख कर इस शेर को सुनें. शायद मज़ा आये.. .. ;-))) 

Comment by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 12:47pm
//सुन री पवन ! पवन पुरवइया .. जैसा कोई गीत याद आ रहा है क्या ? //
आपकी पारखी नज़र को सलाम सर। दरअस्ल मुझे शेर समझ नहीं आया था।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2017 at 12:31pm

आदरणीय अफ़रोज़ सहर भाई, आपकी उदार और भावमय प्रतिक्रिया से मन आनन्दित है. वस्तुतः इसी ढंग की टिप्पणी और प्रतिक्रियाएँ ओबीओ की परम्परा रही हैं. क्यों कि सार्थक टिप्पणियों से ही यह पता चलता है कि पाठक ने वस्तुतः रचना में क्या पढ़ा और कितना समझा. ऐसी समझ रचनाधर्मिता केलिए नितांत आवश्यक है. वर्ना, आदरणीय, आपकी ग़ज़ल या कोई रचना बहुत अच्छी लगी.. जैसे वाक्यों से न तो रचनाकार का भला होता है और न ही पाठक का. 

इसी प्रस्तुति में देखिए, आखिरी शेर में मेरी लापरवाही ने गलती कर दी थी. अगर उस ओर आदरणीय समर भाई और आदरणीय नीलेश जी ने ध्यान न दिलाया होता तो मैं वाहवाही सुनता रहता और उक्त शेर के गलत मिसरे के साथ मेरी ग़ज़ल उन लोगों के पास चली जाती जिनकी ओर से ’ऑनलाइन तरही मुशायरा’ आसन्न है. 

आपको ये जान कर अच्छा लगेगा,  ऐसी विशद टिप्पणियों को हम ’ओबीओ टिप्पणी’ कहा करते हैं. यानी, हर शेर पर नीर-क्षीर करती विशद प्रतिक्रिया ! आदरणीय योगराज भाई व्यस्त होने के पूर्व अक्सर ऐसी टिप्पणियाँ किया करते थे. और हम सब भी टिप्पणियाँ देने के क्रम में उनका अनुकरण करते थे. आप विश्वास करें ऐसी टिप्पणियों से अन्य पाठकों और और रचनाकारों की विधागत, विधानगत तथा कथ्यगत समझ जितनी बढ़ती है वह विधान संबंधी कई-कई आलेखों को पढ़ जाने के बावज़ूद शायद बढ़े. 

पुनः, आपकी भावमय और उत्साहवर्द्धन करती आत्मीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद. उचित होगा यदि आप अन्य शेरों पर भी अपनी प्रतिक्रिया दें.

शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2017 at 10:51am

//कोई भी दिक्कत नहीं है सर //

 

फिर आपके मूल प्रश्न का संदर्भ क्या था ? खुल कर बोलिए न ? .. 

सुन री पवन ! पवन पुरवइया .. जैसा कोई गीत याद आ रहा है क्या ? 

शुभेच्छाएँ 

 

Comment by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 5:25am
//भाई दिनेश जी, आप तो सही ही हैं. फिर दिक्कत क्या है ?//
कोई भी दिक्कत नहीं है सर। ☺☺
Comment by Afroz 'sahr' on October 9, 2017 at 10:52pm
आदरणीय समर साहिब भूलवश आखरी शेर को मक्ता कह दिया । सादर,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
23 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service