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जिसे ख़यालों में रखता हूँ - सलीम रज़ा रीवा


1212 1122 1212 22

............................................

जिसे ख़यालों में रखता हूँ शायरी की तरह.
मुझे वो जान से प्यारा है जिंदगी की तरह.
.
क़सम जो खाता था उल्फ़त में जीने मरने की.
वो सामने  से गुज़रता है अजनबी की तरह.
.
यूँ ही न बज़्म  से  तारीकियाँ  हुईं रुख़सत.
कोई न कोई तो आया है रोशनी की तरह.
.
खड़े हैं छत पे  हटा कर निक़ाब वो रुख़ से.
अंधेरी शब भी यूँ रोशन है चांदनी की तरह.
.
अगर  बिखर  गए  अपना  वुजूद  खो  देंगे.
जुड़े रहें यूँ ही फूलों की इक लड़ी की तरह.
.
तेरे  ही  प्यार की  ख़ुशबू  है मेरी साँसों में.
मेरी हयात में शामिल है तू ख़ुशी की तरह.
.
ये  मांगता  है "रज़ा" हर  घड़ी दुआ रब से.
कभी  तो जी लूँ ज़रा देर आदमी कि तरह.

.......................................

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Afroz 'sahr' on September 18, 2017 at 2:16pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब खू़बसूरत ग़ज़ल है ! बहुत बधाई आपको !
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 18, 2017 at 1:11pm

जनाब सलीम साहिब , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ     

Comment by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 12:32pm
भाई नीलेश जी,
ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 12:31pm
आ. सुरेन्द्र नाथ जी,
ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 12:29pm
आ. मुकेश जी,
आपकी मुहब्बत के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 12:13pm
जनाब शिज्जु "शकूर" साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया इस नाचीज़ पर मुहब्बत बनाए रखिए,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 12:09pm
आ. गिरिराज भंडारी जी,
आपकी मुहब्बत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 18, 2017 at 11:45am

बहुत ख़ूब,
उम्दा ग़ज़ल पेश की आपने ..
बधाई 

Comment by नाथ सोनांचली on September 18, 2017 at 11:29am
आद0 सलीम भाई खूबसूरत ग़ज़ल पर दाद के साथ मुबारकबाद कबूल पेश करता हूँ।सादर
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 18, 2017 at 11:24am

BEHATREEN RACHNAA - DAD QUBOOL KAREN MITRAWAR

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