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दीप रिश्तों का' बुझाया जो', जला भी न सकूँ 
प्रेम की आग की’ ये ज्योत बुझा भी न सकूँ  |

हो गया जग को’ पता, तेरे’ मे’रे नेह खबर 
राज़ को और ये’ पर्दे में’ छिपा भी न सकूँ |

गीत गाना तो’ मैं’ अब छोड़ दिया ऐ’ सनम 
गुनगुनाकर भी’ ये’ आवाज़, सुना भी न सकूँ |

वक्त ने ही किया’ चोट और हुआ जख्मी मे’रे’ दिल 
जख्म ऐसे किसी’ को भी मैं’ दिखा भी न सकूँ |

बेरहम है मे’रे’ तक़दीर, प्रिया को लिया’ छीन 
ये वो’ किस्मत का’ लिखा है जो’ मिटा भी न सकूँ |

बाल सूरज हो’ गया अस्त है’ सूनी माँ’ की’ गोद 
आँख सूखी, न गिली  किन्तु रुला भी न सकूँ |

ख़ूनी चालाक था’ गायब किया’ सब औजारें 
साक्ष्य कोई नहीं,’ पापी को' फँसा भी न सकूँ |

मिला’ है प्यार मुझे मांगे’ बिना यार मे’रे 
वो’ है’ ‘काली’ मेरा पाथेय, लुटा भी न सकूँ |

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:17am

आदाब और शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी श्रीवास्तव जी 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:16am

आदाब और शुक्रिया आदरणीय महम्मद आरिफ साहिब 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:15am

आदाब और शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहिब 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:13am

शुक्रिया आदरणीय अफरोज सहर जी 

Comment by Mohammed Arif on September 19, 2017 at 9:22am
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब, अच्छा प्रयास । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2017 at 3:08pm
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
Comment by Afroz 'sahr' on September 17, 2017 at 2:23pm
आदरणीय काली प्रसाद जी आपकी ग़ज़ल में कई मिसरे बहर में नहीं हैं ! बेहतर होगा आप नज़र ए सानी करलें !सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2017 at 1:50pm

आदरणीय काली पद भाई , गज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है , हार्दिक बधाइयाँ । वाक्य विन्यास की कमज़ोरी गैर हिन्दी भाषी होने कारण हमेशा की तरह इस गज़ल मे भी है , कुछ समय और दीजिये इस गज़ल को आदरनीय ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 16, 2017 at 3:54pm

शुक्रिया आ शिज्जू  और आ निलेश भाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2017 at 2:00pm

आ. कालिपद मंडल सर आपकी ग़ज़ल और थोड़ी मेहनत और समय माँग रही है। मैं निलेश भाई से सहमत हूँ यदि ये रचना आयोजन में आती तो विस्तृत चर्चा हो जाती 

कृपया ध्यान दे...

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