For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लाल सलाम: लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

घने जंगलों के बीच जगह जगह लाल झंडे लगे हुए थे. सैनिकों की जैसी वर्दी में कुछ लोग आदिवासियों को समझा रहे थे, “सुनो इस जंगल, जमीन और सारे संसाधनों पर सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही हक़ है, इन पूंजीपतियों के और इनकी रखैल सरकार के खिलाफ, हम तुम्हारे लिए ही लड़ रहें है, इनको तो हम नेस्तनाबूद कर देंगें !”

“पर कामरेड अब तो सरकार हम पर ध्यान दे रही है, सड़क पानी उद्योग की व्यवस्था भी कर रही है, क्यों न इस लड़ाई को छोड़ दिया जाए, वैसे भी सालों से कितना खून बह रहा है?”

“चुप हरामजादी, तेरे मुहँ से बगावत की बू आ रही है, ‘कल्याणी’ अगर तू महिला विंग की कमांडर न होती तो तेरी जान ले लेता साली, कहकर कामरेड ने उसके मुहँ पर एक थप्पड़ जड़ दिया !”

इस से पहले बात आगे बढ़ती तभी जंगलों के बीच से अचानक, एक ‘स्वयंभू जनरल’ कुछ हथियारबंद लोगों के साथ प्रकट हुआ और, लाल सलाम, लाल सलाम के नारों से जंगल गूँज उठा !

‘स्वयंभू जनरल’ कुछ किताबें लाया था, उसने सिंह की तरह गर्जन किया- “लाल सलाम का नारा, तभी सफल होगा, जब इस सम्पूर्ण राज्य पर हमारा राज होगा और उसे पाने के लिए ‘खून’ बहाना पड़ेगा जिसके लिए हमे आधुनिक हथियार चाहियें, और उनके लिए पैसा!”

आनन-फानन में जिसके पास जो था उसने अपना पैसा ,गहना सब देकर एक-एक किताब खरीद ली! अंत में एक किताब बच गयी !

‘स्वयंभू जनरल’ ने ललकार लगाईं, “लगाओ बोली कमाण्डरों-अब तुम्हारी बारी, पर ध्यान रखो, इस पर में अपने खून से हस्ताक्षर कर के दूंगा!”

उसकी बात सुनते ही बोली लगाने वालों की आवाजें उठीं ! “एक–लाख”. दूसरा स्वर गूंजा “दो-लाख” तीसरी आवाज ‘कल्याणी’ की आई “सात-लाख”, इतना सुनते ही सभी लोग हतप्रभ रह गए,अब बारी कल्याणी की थी!

उसने कहा “मेरी जमीन पर जो हाईवे निकला है, उसका मुआवजा है यह, मैं अपना सबकुछ नीलाम कर दूँगी पर यह मुझे ही चाहिये !

‘स्वयंभू जनरल’ ने अपनी उँगली पर काँटा चुभाया और अपने खून से उस आखिरी किताब पर हस्ताक्षर किये और कल्याणी को गले लगाते हुए दे दी, तभी एक जबरदस्त धमाके के साथ सभी के चीथड़े उड़ गए!

कल्याणी ने जनरल के कान में धीरे से कहा था “जय हिन्द!”

"मौलिक व अप्रकाशित"

© हरि प्रकाश दुबे       

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on August 7, 2017 at 8:33am
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी आदाब, लाजवाब , विचारोत्तेजक लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 6, 2017 at 10:04am
"लाल सलाम" और कल्याणी द्वारा "कल्याणकारी" त्याग/बलिदान। बहुत बढ़िया अनुपम भावपूर्ण सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी। प्रवाहमय विचारोत्तेजक रचना शुरू से अंत तक बांधे रखती है। सादर।
Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 3:25pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कृपया पटल पर अपनी सक्रियता बनाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service