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ग़ज़ल....जो दिल को घेर कर बैठी उदासी क्यों नहीं जाती

1222 1222 1222 1222
जो दिल को घेर कर बैठी उदासी क्यों नहीं जाती
नदारद नींद आँखों से उबासी क्यों नहीं जाती

चलीं जायेगीं बरसातें ये मौसम भी न ठहरेगा
हमारे दिल की बैचैनी जरा सी क्यों नहीं जाती

तुम्हारे साथ ही ये ज़िन्दगी तैयार जाने को
दिलों के दरमियाँ काबिज़ अना सी क्यों नहीं जाती

सुना है उसके दर पे सब मुरादें पूरी होतीं हैं
ये व्याकुल रूह जन्मों से है प्यासी क्यों नहीं जाती

ग़मों में मुस्कुराना सीख 'ब्रज' लोगों ने समझाया
बसी है जो ह्रदय में पीर खासी क्यों नहीं जाती
खासी-ज्यादा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 16, 2017 at 9:49pm
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कल्पना भट्ट जी..सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 4:30pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय बृजेश जी हार्दिक बधाई |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 12, 2017 at 8:47am
आदरणीय लक्षमण धामी जी सादर नमन
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 11, 2017 at 11:06pm
आदरणीय समर सर आपकी टिप्पड़ी सदैव ही कुछ नया सिखाती है..मतले को दुरुस्त करता हूँ..तीसरे शैर में जो अर्थ आपने बताया उसी रूप में इस्तेमाल किया है अर्थात दिलों के दरमियाँ जो अना जैसा कुछ है। मक्ते में काफ़िया दोष भी है दरअसल कुछ एक जगह शी और सी का एक साथ इस्तेमाल देखा है इसीलिए मैंने कर लिया..लेकिन आपने बात साफ की है तो सुधार की कशिश करता हूँ..सादर नमन स्वीकार करें..
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2017 at 10:57pm
एक अच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Samar kabeer on July 11, 2017 at 9:52pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के सानी मिसरे में 'नदारत'ग़लत है,सही शब्द है "नदारद",दुरुस्त कर लें ।

तीसरे शैर में 'अना सी' क़ाफ़िया सही नहीं है,'अना सी' यानी अना जैसी ।

मक़्ते में क़ाफ़िया दोष है 'तलाशी'जबकि क़ाफ़िया 'सी' का चल रहा है ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 11, 2017 at 3:38pm
आदरणीय शुक्ला जी सुन्दर शब्दों में सराहना हेतु आपका ह्र्दयतल से अभिनंदन..सादर
Comment by Ravi Shukla on July 11, 2017 at 2:33pm

आदरणीय ब्रजेश जी बहुत अच्‍छे अशआर कहे आपने दिल से बधाईया स्‍वीकार करें  मकता बहुत अच्‍छा लगा

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 11, 2017 at 11:05am
आदरणीय आरिफ जी रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है..सादर
Comment by Mohammed Arif on July 11, 2017 at 8:18am
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब, लाजवाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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