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ग़ज़ल----(कब वो मेरे दिल से निकला था)

ग़ज़ल
---------
(फअल-फऊलन-फेलुन-फेलुन )

सिर्फ़ वो महफ़िल से निकला था |
कब वो मेरे दिल से निकला था |

दिलबर के दीदार का मंज़र
चश्म से मुश्किल से निकला था |

रास्ता मेरी मंज़िल का भी
उनकी ही मंज़िल से निकला था |

जिसने बचाया बद नज़रों से
वो जादू तिल से निकला था |

हरफे निदा जो बना अदावत
ज़ह्ने मुक़ाबिल से निकला था |

आ ही गया वो फिर मक़्तल में
बच के जो क़ातिल से निकला था |

मेरी तरफ तस्दीक़ न देखो
साँप किसी बिल से निकला था |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 14, 2017 at 8:06pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई...सादर
Comment by Samar kabeer on May 14, 2017 at 7:51pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 14, 2017 at 1:25pm
मुहतरम जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 14, 2017 at 1:24pm
मुहतरम जनाब आरिफ साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by नाथ सोनांचली on May 14, 2017 at 9:22am
आद0 तस्दीक अहमद खान जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल कही आपने, बधाई आपको।
Comment by Mohammed Arif on May 14, 2017 at 7:42am
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,हर शे'र लाजवाब,हर शे'र उम्दा । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल कीजिए ।

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