For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"तुमने कहा था भूल जा"

लौकिक अनाम छंद 
221 2121 1221 212

तुमने कहा था भूल जा तुमको भुला दिया |
जीना कठिन हुआ भले' जीके दिखा दिया |

.

अब और कुछ न माँग बचा कुछ भी तो नहीं
इक दम था इन रगों में जो तुम पर लुटा दिया |

.

जो रात दिन थे साथ में वही छोड़ कर गये
था मोह का तमस जो सघन वो मिटा दिया |

.

अब चैन से निकल तिरे जालिम जहान से
कोई कहीं न रोक ले कुंडा लगा दिया |

.

धक धक धड़क गया बड़ा नाजुक था  मेंरा दिल 
नश्तर बहुत था तेज जो उसने चुभा दिया |

.

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Chhaya Shukla on May 6, 2017 at 10:06am

मोहतरम जनाब समर कबीर जी शुक्रिया आपका सादर |

Comment by Chhaya Shukla on May 6, 2017 at 10:04am

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह "कुशक्षत्रप" जी आपकी सराहाना का बहुत बहुत आभार ! कृपया स्नेह बनाये रखें |

Comment by नाथ सोनांचली on May 5, 2017 at 3:44am
त्रुटि सुधार, ग़ज़ल का उम्दा प्रयास पर आपको बधाई।
Comment by नाथ सोनांचली on May 5, 2017 at 3:44am
आद0 छाया शुक्ला जी सादर अभिवादन, हजल का उम्दा प्रयास, बधाई।
Comment by Samar kabeer on May 4, 2017 at 12:32pm
मोहतरमा छाया शुक्ला जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।
बाक़ी जनाब निलेश जी बता ही चुके हैं ।
Comment by Chhaya Shukla on May 3, 2017 at 10:46pm

आदरणीय निलेश जी आपका सुझाव महत्व पूर्ण है | कृपया स्नेह बनाये रखें | पुनः नमन 

Comment by Chhaya Shukla on May 3, 2017 at 10:44pm

जी, आदरणीय  mohammed arif जी आपकी उपस्थिति का स्वागत है | सराहना के लियी आभार आपका | 

Comment by Chhaya Shukla on May 3, 2017 at 10:43pm

आदरणीय nilesh shevgaonkar जी आपकी उपस्थिति को नमन 
मेरी शंका का समाधान हुआ अच्छा लगा | कृपया साथ में संशोधन भी दिया जाता  तो सुंदर होता | हृदय से आभार आपका | संशोधन का प्रयास होगा | 
जय माँ शारदे ! 

Comment by Mohammed Arif on May 3, 2017 at 9:39pm
आदरणीया छाया जी आदाब, अच्छा प्रयास । बधाई स्वीकार करें । आदरणीय नीलेश जी की बातों पर ध्यान दें ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2017 at 4:01pm

आ. छाया जी,
आपकी प्रस्तुति का  स्वागत है ...
.
अव्वल तो ये विधा ग़ज़ल   है..गीतिका नहीं... 
कुछ लोग बे-वजह इसे गीतिका नाम देकर इसका हिंदी करण करने पर आमादा हैं जिस का विरोध किया जाना चाहिए.
.
मतले के सानी मिसरे में पर को 11 में नहीं बाँधा जा सकता, वो 2 ही रहेगा ..इसी तरह चल भी 11 नहीं होगा अत: ये दोनों मिसरे बहर में नहीं हैं ..
जान स्त्रीलिंग है अत: लुटा दी आयेगा ..लुटा दिया कहाँ ग़लत है ...
कहन पर काम करते रहिये ....और अच्छी ग़ज़लें पढ़िये तो कहन अपने आप बेहतर होगा ...
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service